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________________ श्रीकृष्ण-कथा-प्रब्रुम्नकुमार का जन्म और अपहरण १६६ वासुदेव कृष्ण पुत्र वियोग मे सिर धुन कर पछताते । समस्त द्वारका शोक विह्वल थी। ऐसे ही शोकपूर्ण समय में मुनि नारद का द्वारका मे आगमन हुआ। यादवो को गोकाकुल देखकर उन्होने पूछा -कृष्ण । यह क्या ? समस्त यादव दुखी हैं । क्या हो गया ? -मुनिवर | रुक्मिणी के नवजात शिशु को मेरे ही हाथो से कोई हरण कर ले गया । आपको मालूम हो तो उसका पता बता दो। वासुदेव ने शोकपूर्ण शब्दो मे उत्तर दिया । नारदजी आश्वासन देते हुए वोले -हे कृष्ण ! विशिष्ट ज्ञानी मुनि अतिमुक्त तो अव मुक्त हो गए। इसलिए मैं पूर्व विदेह क्षेत्र के तीर्थकर भगवान सीमन्धर स्वामी से पूछ कर तुम्हे वताऊँगा। ___ यह सुनकर यादवो ने नारद से आग्रहपूर्वक कहा मुनिवर | जितनी गीघ्र हो सके, शिशु के समाचार लाइये। यादवो की उत्सुकता देखकर नारद उठ खडे हुए । यादवो ने उन्हे उचित सम्मान और शिशु-समाचार शीघ्रातिशीघ्र लाने के आग्रह सहित विदा किया। -त्रिषष्टि० ८६ --वसुदेव हिंडी, पीठिका ० वनुदेव हिंडी मे केवल प्रद्य म्न-जन्म और उसके अपहरण का वर्णन है । सत्यभामा-रुक्मिणी-विवाद और शर्त का कोई उल्लेख नहीं है।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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