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________________ श्रीकृष्ण-क्रया-मातृ-भक्ति १५५ अपनो झेप छिपाने के लिए अनाधृष्टि भी। न्थ धनुप की मभा से निकला और वसुदेव के निवास स्थान पर जा पहुँचा । अनावृष्टि ने कृष्ण को वाहर ही रथ मे बैठा छोडा और अन्दर जाकर पिता वसुदेव से बोला --पिताजी । जिम माझं धनुप को अन्य गाजा छ भी न सके थे, मैंने उसे चढा दिया। यह सुनते ही वसुदेव ने तुरन्त कहा -तुम शीघ्र ही मथुरा नगरी से बाहर निकल जाओ। यदि कस को मालूम हो गया तो तुम्हे जीवित नहीं छोडेगा। पिता की बात सुनकर अनावृष्टि भयभीत हो गया । उल्टे पैरो ही लौटा और रथ पर चढकर गोकुल की ओर चल दिया। ___गोकुल मे कृष्ण और वलदेव से विदा लेकर अनाधृष्टि शौर्यपुर चला गया। सर्वत्र यह वार्ता प्रसारित हो गई कि नन्द के पुत्र ने गाङ्ग धनुष चढा दिया । १ जिनमेन के हरिवंश पुराण मे यह प्रसंग अन्य रूप में वर्णित किया गया है। सक्षिप्त घटनाक्रम निम्न प्रकार है कन गोकुल गया परन्तु कृष्ण उने वहाँ नही मिले । तव वह लौट कर मथुरा आ गया । उमी ममय मथुरा मे सिंहवाहिनी नागशय्या, अतितजय नामक वनुप और पाचजन्य नामक शाय-ये तीन दिव्य पदार्थ प्रगट हुए । कस ने इनका फल ज्योतिपी में पूछा तो उसने बनाया-'जो पुरुप नागशय्या पर चढ कर धनुप की डोरी चटा दे और पाचजन्य शख को फूक दे, वही तुम्हारा शत्र है।' कम ने उद्घोषणा करा दी कि 'जो पुरुप नागणय्या पर चढ कर घनुप की प्रत्यचा चढा देगा और पाचजन्य शख को वजा देगा उमे राजा कस अपना मित्र समझकर अलभ्य-इष्ट वस्तु देगा तथा उसे मबके पराग्रम को पराजित करने वाला समझा जायगा ।' - इस घोषणा से आकृष्ट होकर अनेक राजा आए पर सफलता किसी को भी न मिली । ममी लज्जित होकर चले गए।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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