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________________ १५४ जैन कयामाला भाग ३२ __ अनाधृष्टि को निगश देखकर कृष्ण रथ से उतरे और लीलामात्र 'मे वृक्ष को उखाड कर एक ओर फेक दिया । अनावृष्टि ने पराकमी कृष्ण को प्रसन्न होकर कठ से लगा लिया । स्वजन की वीरता किसे आनदित नही करती? __ रथ पुन चलने लगा। यमुना नदी को पार करके मथुरा में प्रवेश किया और मीधे धनुपवाली सभा में जा पहुंचे। ___ सभा के मध्य मे गाङ्ग धनुष रखा हुआ था और समीप ही मच पर सर्वाग मुन्दरी सत्यभामा आसीन थी। वह कृष्ण की ओर सतृप्ण दृष्टि से देखने लगी । उसके हृदय मे कामदेव जाग्रत हो गया। मन ही मन उसने कृष्ण को अपना पति मान लिया। ___ मण्डप मे बैठे उपस्थित राजाओ के समक्ष अनावृष्टि रथ से उतरा और धनुष की ओर चला । अभी वह धनुष के पास पहुंचा भी न या कि उसका पैर फिसल गया और गिर पड़ा। उसका हार टूट गया, मुकट भग हो गया और कुण्डल गिर पडे । गिरते हुए को देखकर जमाना सदा से हँसता आया है । सत्यभामा तो मन्द-मन्द मुस्करा कर ही रह गई किन्तु सभी उपस्थित राजा खिलखिला कर हँस पडे । अनाधृष्टि के मुख पर खीझ के भाव उभर आए। ___कृष्ण इस उपहासास्पद स्थिति को न सह सके । वे तुरन्त रथ से उतरे और पुप्पमाला के समान ही गाङ्ग धनुप को उठाकर उस पर प्रत्यचा चढा दी। राजाओ की खिलखिलाहट आश्चर्य में बदल गई। वे आश्चर्य चकित होकर कृष्ण की ओर देखने लगे । सत्यभामा की मनोभावना सत्य हो गई। सभी को आश्चर्यचकित छोडकर कृष्ण रथ में जा बैठे और १ भागवत १०/४२/१५-२१ यहाँ इतना और है कि जब धनुप के रक्षक असुरो और कम की सेना ने उनका विरोध किया तो उन्होने धनुष को तोड डाला उमके टुकडो से मब को मार गिराया।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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