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________________ श्रीकृष्ण काया-वाल-क्रीडा मे परोपकार १५१ कस का केशी नाम का वलवान अश्व भी अपने करतब दिखाने लगा। वह भी गायो को भयभीत करता । श्रीकृष्ण ने अपना वज्र समान हाथ उसके मुख में वलपूर्वक डाल दिया और सॉस. रुक जाने से उसका प्राणान्त हो गया। इसी प्रकार खर' और मेष भी उपद्रव करते हुए श्री कृष्ण के वलिष्ठ हाथो से मारे गए। १ (क) भवभावना २३८१ । (ख) ग्वर की तुलना श्रीमद्भागवत के धेनुकासुर में की जा सकती है । इतना भेद अवश्य हे कि धेनुकासुर का वध बलरामजी के हाथो मे होता है किन्तु उसके अन्य साथियो का वध दोनो भाई मिल कर करते हैं । नक्षिप्त कथानक निम्न प्रकार हैएक दिन श्रीदामा (कृष्ण के साथी ग्वाल-वाल) ने कहा कि समीप ही एक ताल वन है । उसमे बड़े अच्छे-अच्छे रसीले फनवाले वृक्ष हैं । किन्तु उसकी रक्षा घेनुकासुर करता है। वह गधे का रूप बना कर रहता है। यदि तुम उमे मार दो तो हम लोग फल खा सकते हैं। यह सुनकर कृष्ण-बलराम दोनो भाई नभी ग्वाल-बालो के नाथ ताल वन पहुंचे । बलराम ने एक वृक्ष को हिला कर पके फन गिराए । तभी गधे का रूप वाण किए हुए धेनुकानुर वहां आया और उसने उलराम जी की छाती मे वडी जोर की दुलत्ती मारी। जब उसने दुवारा दुलत्ती चलाने का प्रयाम किया तो बलरामजी ने उसकी पिछनी टाँगे पकड ली और घुमा कर ताल वृक्षो पर दे मारा । असुर के प्राण पखेरु उड गए। उसका शरीर कई वृक्षो को गिराता हुआ भूमि पर आ गिरा। उसके सभी भाई-बन्धु (सव के मव गधे) बलराम पर टूट पडे । तव दोनो भाइयो ने उन नव को मार कर ताल वन को निष्कटक कर दिया । (श्रीमद्भागवत स्कन्ध १०, अध्याय १५, श्लोक २०-४०)
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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