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________________ १३० जैन कथामाला भाग ३२ कुछ दिन पञ्चात् वसुदेव को मुनि की भविष्यवाणी जात हुई तो उनके मुख से पश्चात्ताप पूर्ण शब्द निकले -कस ने मुझे छल लिया। देवकी को भी बहुत दुख हुआ। परन्तु अव हो क्या सकता था। दोनो ही वचनवद्ध थे। ___ कस ने भी इस कारण कि वे कही निकल न जाएं उन दोनो पर पहेरदार विठा दिए। अव देवकी और वसुदेव की दशा कस के बन्दी' की ली थी। --त्रिप्टि०८/५ - उत्तर पुराण ७०/३६६-३८३ -वसुदेव हिंडी, देवको लभक १ श्रीमद्भागवत के अनुसार कस द्वारा देवकी और वसुदेव को बन्दी बनाए जाने की घटना इस प्रकार है - एक बार वसुदेवजी अपनी नव-विवाहिता पत्नी देवकी के साथ मथुरा नगरी से जाने को रथ मे सवार हुए । उस समय वहिन के प्रति प्रेम और वसुदेव के प्रति आदर प्रदर्शित करने के लिए कस स्वय उनके रथ का सारथी बना । जिस समय वह रथ को चला रहा था तभी उसे आकाशवाणी सुनाई दी—'अरे मूर्ख । जिसको तू रथ मे बडे प्रेम से विठा कर ले जा रहा है उसी देवकी का आठवाँ गर्म तुझे मारेगा।' यह सुनते ही कस ने देवकी के केश पकड लिए । तव वसुदेव ने कहा-'हे सौम्य । इस देवकी से तो तुम्हे कोई भय नहीं है। इस समय इसे मारना भी उचित नहीं है। मैं तुम्हे इसके सभी गर्भो को सौपने का वचन देता हूँ।' इस बात को स्वीकार करके कस ने देवकी के केश छोड दिये और उन दोनो को बन्दी बना लिया। (श्रीमद्भागवत् १०/१/३०-५६)
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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