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________________ श्रीकृष्ण-कथा-कम का छल १२६ · वसुदेव से कस की चिन्ता छिपी न रही। उन्होने स्नेह से पूछा -कस । ऐसे सुअवसर पर तुम्हे क्या चिन्ता लग गई ? मुझे वताओ । मैं अवश्य दूर करूंगा। . . अजलि वाँध कर कस वोला -आपने मुझ पर अनेक उपकार किए है। मुझे अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा देकर योग्य बनाया। राजा जरासघ से जीवयशा दिलवाई। मैं आपके उपकारो से दवा हुआ हूँ, किन्तु अब भी मेरा मन नहीं भरा। एक उपकार और कर दीजिए। -क्या चाहते हो ? स्पष्ट कहो। मैं तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी करूंगा। ___-मेरी इच्छा है कि आप देवकी के सात गर्भ जन्मते ही मुझे दे दे। देवकी भी दोनो की वाते सुन रही थी। वह भ्रातृप्रेम से विभोर होकर बोली -भैया | कैसी बात करते हो, जैसे तुम्हारा मुझ पर कोई अधिकार ही न हो ? मेरे और तुम्हारे पुत्र मे क्या कोई अन्तर है ? तुम्हारे ही प्रयास से मुझे वसुदेव जैसे पति मिले है । हमारे दोनो के संयोग से जो पुत्र हो, उन्हे तुम ले लेना । - वसुदेव ने भी कहा____-प्रिये | अधिक कहने से क्या लाभ ? तुम्हारे सात गर्भ जन्म लेते ही कस को दे दिए जाएंगे। कहो कस ! अब तो प्रसन्न हो। अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कस वोला- . --आपकी बड़ी कृपा है। आप जैसा कोई दानी नही. और मुझ जैसा कोई लेने वाला नही । - इसके पश्चात् सभी आनन्दोत्सव मनाने लगे । कस की इच्छा पूरी हो चुकी थी।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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