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________________ श्रीकृष्ण-कथा- —कस का छल १२५ तो करता है किन्तु योग्य को जोडता नही । विधाता निर्माता तो है, परन्तु साथ ही अपडित भी । – कैसे ? - वह केवल सम्बन्ध निश्चित करता है, जोडता तो मनुष्य है । वसुदेव नारद की बात सुनकर चुप हो गए और गम्भीरता से विचार करने लगे । तब नारद ने ही पुन कहा - वसुदेव तुमने अनेक मानव और विद्याधर कन्याओ से विवाह किया है किन्तु देवकी उन सबसे उत्तम है। विधाता ने ही देवकी का सम्बन्ध तुम्हारे साथ निश्चित किया है । अब तुम जाकर उसे जोडो । यह कह कर नारदजी वहाँ से चले गए । वसुदेव और कस ने भी अपनी राह ली । नारदजी सीधे देवकी के कक्ष मे पहुँचे और उसके समक्ष वसुदेव के रूप गुण की चर्चा इस ढंग से की कि वह मुग्ध होकर वसुदेव के ही नाम की माला फेरने लगी । X X कस और वसुदेव राजा देवक के सम्मुख पहुँचे तो उसने बडे प्रेम और उत्साह से उनका आदर किया । कस ने वसुदेव का परिचय देते हुए अपने आने का प्रयोजन बताया। राजा देवक कुछ देर तक गभीरता पूर्वक सोचता रहा और फिर वोला - कस । यद्यपि तुम्हारी माँगनी उचित है । वसुदेव का कुल शील भी ऊँचा है, किन्तु इस प्रकार अचानक ही विवाह का प्रस्ताव' मुझे कुछ जँचा नही । -तो" क्या इच्छा है आपकी ? कस ने पूछा । - मैं इस विषय पर कुछ समय तक सोचना चाहता हूँ । - देवक ने उत्तर दिया । राजा देवक का उत्तर कुछ इस प्रकार का था कि कस और वसुदेव वहाँ से उठकर अपने शिविर की ओर चल दिए । देवक भी गंभीर मुख-मुद्रा मे अन्त पुर जा पहुँचा। रानी देवी ने पूछा
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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