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________________ जैन कथामाला भाग ३२ - यह सपूर्ण वृतान्त - नारद का भूत भविष्य आपको कैसे ज्ञात हुआ, किसने बताया ? १२४ - - त्रिकालज्ञानी मुनि सुप्रतिष्ठ ने मुझे यह सब बताया था ।समुद्रविजय ने आगे कहा - किन्तु नारद स्वभाव से ही कलहप्रिय, अवज्ञा से कुपित होने वाला, स्वच्छन्द विहारी, सर्वत्र पूजित और एक स्थान पर न टिकने वाला होता है । नारद का यह परिचय जान कस सतुष्ट हुआ । X X. X एक वार कस ने वसुदेव को वडे आग्रह और प्रेम से मथुरा बुलाया । उसके आग्रह को वसुदेव ने स्वीकार किया और मथुरा आ गए। कस ने उनका बहुत आदर-सत्कार किया । जीवयशा के साथ कस बैठा हुआ वसुदेव से बाते कर रहा था । एकाएक वह वोल उठा - आपने मुझ पर सदा ही स्नेह रखा है । अव मेरी एक वात और मानिए । कहो । - मृतिकावती नगरी का राजा देवक मेरा काका लगता है । उसकी पुत्री देवकी से आपको विवाह करना पडेगा ? – कस ने साग्रह. कहा । वसुदेव ने अपनी स्वीकृति दे दी । कस हर्षित हो गया। दोनो मृतिकावती नगरी की ओर चल दिये । मार्ग मे उन्हे नारदजी मिले । दोनो ने भली-भाँति उनका सत्कार किया । नारदजी ने पूछा - तुम लोग कहाँ जा रहे हो ? वसुदेव ने वताया - अपने सुहृद इस कस के साथ मृतिकावती के राजा की पुत्री देवकी से विवाह करने । नारद जी प्रसन्न होकर बोले— -यह तुम विल्कुल ठीक कर रहे हो। क्योकि विधाता निर्माण
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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