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________________ १०८ जैन कथामाला भाग ३१ व्यग का उत्तर दिया जरासंध ने - इसके गर्व को चूर्ण करना ही होगा। सभी राजा अपनी-अपनी सेना सजा कर मैदान मे आ डटे । X X X जरासंध की प्रेरणा से समुद्रविजय आदि सभी राजाओ की सेना मैदान मे आ जमी । राजा रुधिर भी अपनी सेना लेकर मुकावते मे आ खडा हुआ । दविमुख विद्याधर' सारथी सहित वसुदेव सवार हो गए। वसुदेव ने भी वती द्वारा दिए गए धनुप आदि अस्त्रो को जरास का कटक और राजाओ के वसुदेव ने कहा रथ ले आया और उस पर वेगवती की माता अगारधारण कर लिया । समूह को संबोधित करके -हॉ अब कुछ समय तक तो तुम लोग टिक ही सकोगे । वसुदेव की इस बात का उत्तर दिया जरासध की सेना ने हल्ला वोल कर । पहले आक्रमण मे ही राजा रुधिर की सेना भग हो गई । विजय से फूल कर राजा शत्रुजय वमुदेव की ओर मुडा । विद्यावर दधिमुख ने स्वय सारथी का भार सँभाला और वसुदेव का रथ शत्रु जय के सामने ला खडा किया । शत्रु जय ने गर्वित होकर शस्त्र प्रहार किया १ दधिमुख विद्याधर राजा विद्य ुद्वेग का पुत्र और मदनवेगा ( वसुदेव की पत्नी) का भाई था । वसुदेव ने विद्याधर विद्युद्वेग को दिवस्तिलक नगर के राजा त्रिशिखर को मार कर उसके बन्दीगृह से मुक्त कराया था । साले-वहनोई के सम्बन्ध और कृतज्ञता के कारण दधिमुख वसुदेव के लिए रथ लेकर आया । २ वेगवती ( वसुदेव की पत्नी) की माता ने नीलकंठ, अगारक, सूर्पक आदि विद्याधरो मे युद्ध करने के लिए एक दिव्य धनुप और दो दिव्य तरकस दिये थे ।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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