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________________ जैन कथामाला भाग ३१ चर्चा मुनी कि 'एक बार इसी उद्यान मे तीर्थकर भगवान नमिनाथ का समवशरण लगा था । उस समय देवी लक्ष्मी ने उनके समक्ष बहुत ही मनोरम नृत्य रास किया । तभी मे इस उद्यान का नाम लक्ष्मीरमण 'पड गया है । ह 'प्रभु की समवसरण भूमि मे ठहरा हूँ' यह जान कर उन्हे अपार हर्ष हुआ। वे मन ही मन प्रभु वन्दना करने लगे । उसी समय वहाँ एक विमान उतरा । विमान दिव्य-मणियो से विभूषित या । मणियो की चमक आँखो को चुधिया रही थी । उसमे से एक प्रमुख देवता अपने अनुचरो सहित उतरा । वसुदेव ने उसमे से उतरे एक देव से पूछा- यह किसका विमान है ? - धनद कुवेर का । - किस अभिप्राय से पृथ्वी पर आये है ? - अर्हन्त भगवान की वन्दना करने के वाद कनकवती के स्वयवर मे सम्मिलित होने के लिए । कमार वसुदेव सोचने लगे- 'धन्य है जिनेन्द्र भगवान् कि देव भी इसकी वन्दना करते है । और इस कनकवती का भाग्य क्या कहिए कि देव लोग भी इसके स्वयंवर मे सम्मिलित होने के लिए आए है ।' वे इन्ही विचारो मे मग्न थे कि कुबेर भगवान की वन्दना करके बाहर निकला । वहाँ उसने वसुदेव को देखा । वह सोचने लगा'यह पुरुष देवोत्तम आकृति वाला है । मनुष्यो और विद्याधरो मे तो ऐसा रूप मिलता नही ।' विमान मे बैठे बैठे उसने कुछ निर्णय किया और अगुली से वसुदेव को बुलाने लगा । 'मैं मनुष्य हूँ और यह परम आर्त तथा महर्द्धिक देव है' मन मे विचारते हुए वसुदेव उत्सुकतापूर्वक उसके पास जा पहुँचे । कुवेर ने मधुर वचनो से उनका स्वागत किया । वसुदेव ने विनीत स्वर मे पूछा - आज्ञा दीजिए | मै आपका क्या काम करू ?
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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