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________________ श्रीकृष्ण कथा -- कुवेर से भेट ६५ यह चन्द्राप विधाघर है । वडे प्रेम से वसुदेव ने उसका आलिंगन किया और पूछने लगे ? - मित्र | अर्ध रात्रि को कैसे कप्ट किया यहाँ आने का चन्द्रातप कहने लगा - समय कम था, इसीलिए आपके विश्राम ने विघ्न डाला । क्या ? - हॉ, आज कृष्ण पक्ष की दशमी है और शुक्ल पक्ष की पंचमी को उसका स्वयवर होने वाला है । आप अवश्य चलिए वह आपको चाहती है । वसुदेव प्रसन्न हो गये । पूछा - तुमने यह कौतुक किस प्रकार किया ? विद्याधर चन्द्रातप ने बताया - हे यदुत्तम। आपको कनकवती का रूप बताने के बाद मै पेढालपुर पहुँचा । विद्या-वल मे आपका एक चित्र पट बनाया और राजपुत्री के अक मे डाल दिया । आपके चन्द्रमुख को वह चकोरी की भाँति देखने और आह भरने लगी । उसने मुझसे कहा - 'इस सुन्दर युवक को स्वयंवर मे अवश्य लाना ।' इसलिए आपका वहाँ पहुंचना जरूरी है । हँस कर वसुदेव वोले - तुमने अपना कौशल दिखा ही दिया । ठीक है, कल सुबह मै स्वजनो की आज्ञा लेकर प्रमदवन आ जाऊँगा । तुम मुझे तैयार मिलना | विद्याधर चन्द्रातप यह सुनकर अतर्धान हो गया और वसुदेव अपनी शेय्या पर आ सोए । दूसरे दिन स्वजनो से आज्ञा लेकर वसुदेव और चन्द्रातप पेढालपुर की ओर चल दिये । पेढालपुर मे राजा हरिश्चन्द्र ने वसुदेव को आदरपूर्वक लक्ष्मीरमण उद्यान मे निर्मित भवन में ठहरा दिया । वसुदेव ने लक्ष्मीरमण उद्यान के नामकरण के सम्वन्ध मे लोक
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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