SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मेरे विचार व दृष्टिकोण के अनुकूल इस ग्रन्थ का सम्पादन हुआ है । मेरे आत्मप्रिय सहयोगी श्रीचन्दजी सुराना 'सरस' ने अथक श्रम करके पूर्वग्रन्थो की भाँति ही इसका भी विद्वत्तापूर्ण सपादन किया है । डा० श्री वृजमोहन जी जैन का भी अच्छा सहयोग रहा है । प्रारम्भिक प्रस्तावना मे सपादक - वन्धु ने श्रीकृष्ण - कथा का अनुशीलन कर जो वक्तव्य लिखा है, वह प्रत्येक पाठक को पठनीय व मननीय है । मैं सम्पादकद्वय को भूरिग साधुवाद देता हूँ । मेरे प्रेरणास्रोत श्रद्धय स्वामीजी श्री वृजलालजी महाराज की वात्सल्यपूरित प्रेरणा का ही यह सुफल है कि मैं यत्किचित् साहित्यसर्जना कर लेता हूँ। श्री विनयमुनि एव श्री महेन्द्रमुनि की सेवा शुश्रूषा से मेरी साहित्य सेवा गतिशील रहती है । गुरुजनो की कृपा व शिष्यो की भक्ति के प्रति मेरा हृदय पूर्ण कृतज्ञ है । मुझे पूर्ण विश्वास है कि पूर्व पुस्तको की भाँति ही पाठक जैन श्रीकृष्ण कथा को मनोयोगपूर्वक पढेंगे। हॉ, इस पुस्तक के साथ ही त्रिपष्टिशलाका पुरुषो के जीवन चरित्र का लेखन भी सपन्नता को प्राप्त हो रहा है । अगले भागो मे जैन साहित्य की स्फुट कथाओ को लेने का विचार है । अस्तु जैन स्थानक व्यावर - मधुकर मुनि
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy