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________________ सिद्धि पाइ ॥ पुत्र वियोगें मरुदेवा माता. अांखें पाडलने वहे आशाता ॥ २८॥नरतने कहे वं दण हालो, एकवार देख तो ऋषन वाल्हो ॥ कटकनी कोडी ने नरतनी साथी, मरूदेवा माता बेठी नेहाथी॥२९॥पुरिम तालने पांखतीयें आया, वाजाना शब्द काने सुनाया ॥ मरुदेवा पुडे नरत राजाने, बेटा वाजां ते बाजे कीहां कने ॥३०॥तमे ऋषननी रिद्धि नजाणी, श्रेतो हुआ केवल नाणी, सेवे सुरनर इंद्र इंद्राणी, बारे परखदानीमें रिद्धी जाणी ॥३१॥बेठक बावाने ती ण गढ थाय, रूपे सोनेने रत्नें जडाय ॥ कालीज रूखा पोल पताका, धर्म चक्कर फिरे खटका ॥ ॥ ३२ ॥ मणिमय तोरण अति घणुं दीपे, क ल्प दृद ते सुवर्णने जीपे ॥ आठ पुष्करिणी इ ति निवारे, पाये लागे परखदा बारे ॥ ३३॥ कांटा उद्याने कमल रचाय, वाणी सांजलतां वि खवाद जाय ॥इम सनिली मरुदेवा माता, प्रां ख पाडलने पामे ने शाता ॥ ३४ ॥ मोहनी मू कीने मन पागे लीधो, केवल पामीने सिद्धिवा स लीधो ॥ नरत आदेश्वर आगल जाय, रि
SR No.010305
Book TitleJain Shiloka Sangraha Pustika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNana Dadaji Gund
PublisherNana Dadaji Gund
Publication Year
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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