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________________ ॥ उदय रत्न कहे पास पसायें, कोडे कल्या ण सन्मख थायें॥२३॥ इति ॥ अथ श्री सजा तीर्थको शिलोको लिख्यते ॥ सरसति माता हुं तुज पाय लागुं, कहेवा शिनोको वरदान मागुं ॥ जहवा शास्त्रमा सुणी या परिमाण, तेवा सिद्धगिरिना करूं वखाण ॥ ॥१॥ प्रथम जिनवर पुंडरीक आगें, निसुणी नविजन श्रुतपट जागे नहीं कोई इस युग श जा तोले, अनंत जिनवर इणपरें बोले ॥२॥ ग्रहगण माहे वडोजिम चंद, पर्वत मांहे तिम एह गिरिंद ॥ सुर नर दानव मिल्या के कोड, सेवा करेले बे कर जोड ॥३॥ जरत सगरें उद्दार कीधा. साध अनंता इणे गिरि सीधा ।। देस देसना संघ बहु आचे, माणक मोती लेइने चधावे ॥४॥ आरज देसमां श्रावक सार, दर्श न करीने सफल अवतार । काग कूकनो नावे अवतार, केतो इण मुखें करूं विस्तार ॥५॥ सदा ए गिरि शाश्वतो सार, एना गुणनो कोई न लाने पार ॥ इणीपरें निसुणो श्रीगुरु वाणी, श्रावक हरख्या के उलट आणी ॥६॥ देशमा
SR No.010305
Book TitleJain Shiloka Sangraha Pustika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNana Dadaji Gund
PublisherNana Dadaji Gund
Publication Year
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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