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________________ शी घोडाने हाथी, राजा बत्तीस हजार सुं सा थी॥ प्राइअो आडंबर अधिक दीवाने, वाणि त्र नि?प सरणाइ वाजे ॥४३ ॥ आप ऐराव ण असवार गजें, मेघामंबर बत्र बिराजे ॥ला ख चोराशी रथ जोतरिया,पायक बन्नकोड पर वरिया ॥४४॥ पालीताणे ते संघपति श्रा वे, गिरि देखीने मन सुख पावे ॥ सोना रुपाने फूलडे वधावे, डुंगर देखीने नावना नावे ॥ ४५ ॥ संघ सघलोही चढीओ श-जे, पहलो रायण रूख तणा पगलाने पूजे ॥ चक्री जोइने हुकम दीधो, पगलां पागथी ए प्रासाद कीधो ॥४६॥ रूपानी रांगने सोनाना पाया, मणिमय देवल नवां निपायां ॥ धवलां रतन म य बिंब नरावे, प्रतिष्ठा पुंडरिकने हाथे करवो ॥४७॥ प्रतिमा पबासण प्रवेश कीधो, ख जीनो खरचीने बहु जश लीधो ॥ पुंडरीकने पू नरत राजा, शेवंजा उपर तीरथ जीहांजां। ॥४८॥ नाम कहोने विधि बतावो, प्रददि णा देइने संघ साथे प्रावो ॥ सूरज कुंडमें स्ना नज कीजें, मुंगरि नीम कुंमें नरीजें ॥४९॥
SR No.010305
Book TitleJain Shiloka Sangraha Pustika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNana Dadaji Gund
PublisherNana Dadaji Gund
Publication Year
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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