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________________ द्रौपदी का चीर हरण बोलना ही पड़ता है। इसलिए मैं पूछता हू, कि अपने को न्यायाधीश कहने वाले, उच्चासनों पर विराजमान लोग इस अत्याचार लीला पर क्यो चुप्पी साधे बैठे हैं। यह स्पष्ट है कि महाराजाघिराज युधिष्ठिर को कपट से बुला कर जुत्रा खेलने पर मजबूर किया गया, इकार करने पर ताने मारे गए और 'न जाने पासे पर क्या जादू पड़ा था कि युधिष्ठिर को कुछ ही समय में महाराजाधिराज से रक बना दिया गया, रक भी नही, बल्कि दास बना लिया गया। मेरी आपत्ति एक तो यह है कि जब युधिष्ठिर पहले स्वयं कों हार चुके तो उन्हें द्रौपदी को दाव पर लगाने का भला क्या अधिकार था? - ", 'दूसरी यह कि क्षत्रियो ने चौसर खेलने के जो नियम बना रक्खे हैं उनके अनुसार विरोधी खिलाडी'स्वयं कह कर किसी वस्तु की बाज़ी नही लगवा सकता। पर शकुनि मामा ने महाराज युधिष्ठिर को द्रौपदी का नाम ले कर उसे बाजी पर लगाने का प्रस्ताव ही नही किया, बल्कि उकसाया भी। - तीसरी बात यह कि द्रौपदी, पशु, पक्षी नही है, वह मानव है, बिना उसकी मर्जी के, और जब कि वह जुना खेलना पाप समझती है, उसकी कोई सम्मति इस खेल मे नही थी, तो द्रौपदी को इस अधर्म मे क्यो धकेला जाये ? इस लिए मैं सारा खेल ही नियम विरुद्ध ठहराता हूँ। मेरी राय में द्रौपदी नियम पूर्वक नहीं जीती गई। इस लिए जो कुछ हो रहा है वह भयंकर अन्याय है, जिस का विरोध प्रत्येक न्याय प्रिय व्यक्ति को करना चाहिए।" र युवक विकर्ण के इस तर्क सगत वक्तव्य से, अब तक जिन के मस्तिष्क पर भ्रम का परदा पडा था. उठ गया और लोग चिल्ला उठे- "ठीक है विकर्ण ठीक कहता है। यह अन्याय हो रहा है । यह नियम विरुद्ध हैं। धर्म की रक्षा हो गई। धर्म की रक्षा हो गई।" विकर्ण के वक्तव्य से दुर्योधन के पक्ष पातियोमे खल वली मच गई। उस समय कर्ण, अपने मित्र दुर्योधन के हाथ पांव फूलते देख कर उठ खडा हुया और गरज कर बोला "विकर्ण | तुम निरे मूर्ख हो। तुम सभा मे बैठने के भी योग्य नही हो : तुम्हे शिष्टाचार भी नहीं आता। जिस सभा मे कुल वृद्धजन उपस्थित हो, छोटो को नहीं बोलना चाहिए। फिर तुम विना आजा के. कसे बोलने लगे
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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