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________________ द्रौपदी का चीर हरण .. पया इसी बलबूते पर धनुर्धारी बने थे। आप से तो वह दरिद्री भी अच्छे जो जीते जी अपना सहधर्मिणी की ओर किसी को आँख उठा कर भी नहीं देखने देते। आप की भुजाओ मे बहते गर्म लहू को आज क्या हुआ, आज जब भी सभा मे मुझे अपमानित किया जा रहा है, आप की विद्या. आप का तेज, आपकी वीरता कहा जा कर सो गई? पर आप तो दुर्योधन के दास हैं, अब काहे कों वोलेगे? इसी वीरता पर आप मुझे पाचाल देश से ब्याह कर लाये थे ? ' द्रौपदी के वाक्यों से व्याकुल अर्जुन अपनी गरदन झुकाए खडा रहा । फिर वह सन्नारी भीम, नकुल और सहदेव को सम्बोधित करके बोली-'मैं समझती थी कि पाडववीर है, उन को भुजाओ मे जान है, वे धर्मवीर है धीर और गुणवान हैं। पर आज जब मुर्दो की भाति गरदन लटकाए खडे अपने सामने मुझको अपमानित होते देख रहे हैं, तो मुझे लगता है कि यह सव दिखाने भर के हैं, वरना इनका विवेक तो कब का मर चुका है। कहो, क्या पांडु नरेश की सन्तान आप ही हैं ?" डूब मरो चुल्लू भर पानी मे, तुम्हारे रहते आज मैं अकेली निस्सहाए अबला हो गई है। यह दुष्ट मुझे भरी सभा मे लाकर रक्त के आँसू रुला रहे हैं, और आप लोग मौन खड़े है, मिट्टी के बुतो को तरह ?" पांचाल राज की कन्या को तो आर्त स्वर में पुकारते और असहाय सी विकल देख कर भीम सेन से न रहा गया, वह अपनी परिस्थिति को समझता था, इस लिए कडककर बोला - "भाई साहब! मुझे अाज्ञा दीजिए कि जिन हाथो ने सती द्रौपदी के केशो को पकडकर उसे घसीट कर यहा लाया है, अभी ही उसके हाथ अपनी गदा से तोड़ डालूं। इन दुप्टो का क्षण भर मे काम तमाम करदूं ।" ____ "चुप रह ओ हमारे दास, मुझे मजदूर मत कर कि मैं अभी ही तेरी इस कैची की भाति चलती ज़बान को भरी सभा मे कटवा दूं।" क्रोध से जलता हुआ दुर्योधन गुर्राया। । अर्जुन ने उसे शान्त करते हुए कहा- "भैया भीम ! तुम चुप रहो । महाराज युधिष्ठिर की भूल के परिणाम को
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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