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________________ 1 द्रौपदी का चीर हरण कहने लगा- " तू ऐसे नही मानेगी, पैरो के बल नही सर के बल 'जायेगी ।' / ८१ द्रौपदी तीर की चोट खाकर व्याकुल हरिणी की भात आर्तनाद करती हुई शोकातुर हो अन्त पुर में परन्तु दु शासन ने वहा भी उसका पीछा न छोडा लिया । द्रौपदी ने दीनता पूर्वक कहा - "आज एक ही साड़ी पहन रक्खी है, मुझे सभा मे न ले चलो ।' । भाग चली। दौड़कर उसे पकड़ मैं रजस्वला हूं । सभा मे पहुच कर दुशासन ने उसे फर्श पर दे पटका। सती द्रौपदी सभा मे उपस्थित वृद्धो को लक्ष्य करके बोली - "कपटजाल मे फसा कर महाराज युधिष्ठिर को पापियो ने हस्तिनापुर बुलाया और मजे हुए खिलाडी और धोखे बाज लोगो ने उन्हे कुचक्र र्चा कर अपने जाल मे फंसा लिया । धर्म के प्रतिकूल यह दुर्व्यसन होता रहा, पाप व कपट का षडयन्त्र चलता रहा, पर आप सभी मौन रहे, इस पाप लीला को देखते रहे । आप लोग तो न्यायवंत, विद्यावान, धर्म रक्षक और बुद्धिमान कहलाते हैं, आप राज वशे 'की नाक हैं । क्या यही है आपका न्याय ? यही है आप का धर्म यही है आपकी बुद्धिमत्ता । पापियो ने युधिष्ठिर को अपने जाल मे फसा कर मुझे भो ढाँव पर लगवा लिया, आप सब लोगो ने इस अधर्म अन्याय, अत्याचार और कपट जाल को कैसे स्वीकार कर 1 लिया, उस समय कहा गई थीं यापकी बुद्धिमत्ता, उस समय आप 1 का न्याय कहा जा कर सो गया था । आप की आखो की लज्जां | धर्मबुद्धि कहा चली गई थी ? क्या इसी विरते पर न्यायाधीश बनते { किन्तु दुरात्मा दुशासन न माना उसने कहा "द्रौपदी !, यह तो और भी अच्छी बात है । प्राज तुम्हे अन्धे के पुत्र की शक्ति का भान हो जायेगा । हमारी दासी है तू । तेरे नखरे नही चल सकते ।,, द्रौपदी ने अपने आप को छुडाना चाहा, पर दुशासन कुत्ते की भाति उस से चिपटा था, उसने उसके बाल बसेर डाले, आभूषण तोड फोड डाले, और उसी अस्त व्यस्त दशा मे उस के बाल पकड कर घसीटता हुआ सभा की ओर ले जाने लगा । धृतराष्ट्र के लडके द. शासन के साथ मिल कर भारी पाप कर्म करने पर उतारू हो गए । पर द्रौपदी ने अपना क्रोध पी लिया ।
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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