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________________ - जैन महाभारत का प्रश्न सुनाया। यह सुनकर दुर्योधन चिल्ला उठा, और अपने भाई दु शार से बोला-"दु शासन ! यह नीच पाण्डवो से डरता प्रतीत हो है, तुम्ही जाकर उस घमडी औरत को ले आओ। और य वह आने मे अना कानी करे तो उसकी चोटी पकड कर य घसीट लाओ।" ___ तब विवश हो कर धृतराष्ट्र ने कहा- दुर्योधन ! क्यो व वश को कलकित करता हैं, अपनी मूर्खता से बाज़ आ।" पर दुर्योधन ने सुनी अन सुनी कर दी। दुरात्मा दु शास के लिए इससे अच्छी बात और क्या हो सकती थी, खुशी खुद वह द्रौपदी के रनवास की ओर चल दिया। शिष्टता को ताक प रख कर वह द्रौपदी के कमरे मे घुस गया और निर्लज्जता पूर्व वोला-“सुन्दरी ! आयो, अब क्यो देर लगाती हो। हमने तुर जीत लिया है, अब शरमाती क्यो हो । अरी अब तक पाच की थं अव सौ कौरवो की बन कर गुलछरें उडाना। यह परदा वरदा छोह अव तो सभा मे चलो, बड़े भैया तुम्हे बुलाते हैं, उनका दिल खुः 'करो।" - "देवर ! तुम कैसा उपहास कर रहे हो, मुझे सभा मे जाना चाहते हो। इस मे तुम्हे लज्जा न आयेगी।" द्रौपदी वोली दु शासन को क्रोध चढ गया, बोला- "देवर, देवर कह कर ह 'अपमानित मत करो। कौन देवर किसकी भावी। अब तो तु हमारी दासी हो। इतनी ही लज्जावती थी तो ऐसे मूखों के घ मे क्यो पाई थो; 'द गासन | जरा होश सम्भाल कर बात कर।" श्रावेश पाकर द्रौपदी बोली। "चलती है या नहीं, या बताऊ होश की वात ? मैं नए से बात कर रहा ह तो तू सर पर चढती जाती है ।"-चिल्ला क दु.गासन बोला और लपक कर हाथ पकड़ने की चेष्टा करते हु
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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