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________________ दुर्योधन का पडयन्त्र ५९.. दुर्योधन पिता को राजनीति का पाठ पढ़ाते हुए बोला"पिता जी ! आप की दशा उस कलुछी के समान है जिसे पाक में रहकरभी उस के स्वाद का ज्ञान नहीं होता। आप नीति शास्त्र मे पारगत होते भी नीति को नहीं समझते। पिता जी ! नीति और ससार की रीति-नीति एक दूसरे से भिन्न होती है। सन्तोप और सहन गीलता राजानो का धर्म नही है। राजा का धर्म है कि वह किसी भी प्रकार शत्रुओं पर विजय प्राप्त करे, चाहे उसे लोग न्याय कहे, अथवा अन्याय लोगो की चिन्ता नही करनी चाहिए।" उसी समय शकुनि भी बोल उठा- “राजन् ! दुर्योधन ठोक कहता है, अव की वार इन्द्रप्रस्थ मे द्रौपदी और पाण्डवो ने जितना । दुर्योधन का अपमान किया है, उसे देखते हुए पाप को कुछ करना , ही चाहिए। यदि इस समय आप ने दुर्योधन का साथ न दिया तो । आपको अपने बेटे से हाथ घोने पडेंगे।" इसके पश्चात शकुनि ने' दुर्योधन के निश्चय को कह सुनाया, इसका मनोवछित प्रभाव पडा, धृतराष्ट्र द्रवित हो गए, उन्हो ने दुर्योधन पर प्रेम दर्शाते हुए पूछा - “यदि तुम अपनी ही इच्छानुसार काम करने के इच्छुक हो, तो वताओ, मैं उसमे क्या सहयोग दे सकता हू। अपने ज्येष्ठ पुत्र के न हित के लिए मैं प्रत्येक उचित कार्य करने को तैयार हू।" - तव शकुनि ने सलाह दो-"पाप तो केवल युधिष्ठिर को - चौसर खेलने के लिए निमत्रित कर लीजिए । वस पासो के चक्कर मे युधिष्ठिर को परास्त करके श्राप के पुत्र की इच्छा पूति । कर दी जायेगी। दुर्योधन का दुख दूर करने का इस समय बस एक । यही उपाय है, न लडाई झगड़ा. न रक्त पात, हलदो लगे न फटकारी रग चोखा ही चोखा।" धृतराष्ट्र ने चौसर के सेल मे युधिष्ठिर की सम्पति छीन नेने का पहले तो विरोध किया, पर दुर्योधन और नकुनि दोनों ने पुत्र ? स्नेह को भडका फर और अनेक बाते इधर उधर से मिलावर उन्हें 7 नरम नार लिया। जब शकुनि और दुर्योधन ने देखा कि न. गन: तराष्ट्र पर पुरा कुर्मप्रणा का प्रभाव पलने लगा है तो दुर्योधन अन्त १ मे बोला-"पिता जी! उद्देश्य को पूर्ति के लिए जो भी उपाय हो
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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