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________________ ५३२ जैन महाभारत था। लगा रक्खी है। आप सेनापति हैं या धर्म गुरू ? मुझे अभिमन्यु का सिर चाहिए।" "ठीक है इस दुष्ट को अभी ही मार डालेंगे।" समस्त महारथी चिल्लाए। "चलिए ! देख क्या रहे हैं वह दुष्ट हमारे सैनिको को खा जायेगा।"~दुर्योधन पुनः गरजा। . द्रोणाचार्य क्रोध मे आकर अश्वस्थामा, वहदल, कृतवर्मा, श्रादि पाँच महारथियो को साथ लेकर तेजी से अभिमन्यु की पोर बढे-! और क्षण भर मे ही छः- महारथियो- ने उस वीर वालक को चारो ओर से जा घेरा । अव तक दुर्योधन की आज्ञा पा.कर,चारो -ओर से घरने वालो सैनिकों को अभिमन्यु मौत के घाट उतार चुका - कौरव महारथी जी तोड़ कर युद्ध करने लगे। पर अभिमन्यु चारो ओर से प्रहार कर रहे महारथियो का सफलता से मुकाबला करता रहा। उस ने एक वार द्रोण की ओर अबाध गति से वाण बरसाते हुए गरज कर कहा-'अाचार्य जी! क्या यही हैं आप और आप के साथियो की वीरता? आप तो ब्राह्मण है। विद्वद्वर. -धर्म शास्त्रो के ज्ञाता, नीतिवान होकर अधर्म पर कमर बाध ली ? कहाँ गया तुम्हारा युद्ध धर्म ?" - कर्ण की ओर वाण बरसाते हए उसने ताना मारा- "वडे दानवीर व नीतिवान बनते हो। हारने लगे तो न्याय और धर्म को हो तिलाजलि दे दो ?- धिक्कार है तुम्हारी वीरता पर। दो चूल्लू पानी में डूब मरो।" चारो ओर बौण वर्षा करता हया वह वीर बालक रथ पर खडा नाच सा रहा था। अकेला ही छहो महारथियो का डट कर मुकाबला कर रहा था। अपने बाणों से शो के बाण तोडता और स्वय प्रहार कर के उन के नाको दम कर रहा था। द्रोणाचार्य पूण कौशल का प्रयोग कर के लड रहे थे तभी एक दार पुनः अभिमन्यु " ने ताना मारा- "तो आप हैं शस्त्र; व युद्ध विद्या के गुरू। दुयोधन के साथ रह कर लाज, धर्म और नीति सभी घेच खाये। एक वालक ' को छ महारथियो और उन के सैनिको ने घेर रखा है। कहा है ' आपकी वह विद्या ? कहा है आपकी आँखो का पानी ? क्या वृद्धा.
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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