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________________ F जैन महाभारत 4 मन्यु इतने वीरो के मुकाबले पर थाने के पश्चात तनिक भी विचलित न हुआ । वह उसी तरह वहादुरी से लड़ता रहा । यह देख कर दुर्योधन सहित सभी कौरव वीर चकित रह गए और मन हा मन उसकी प्रशसा करने लगे । कौरव वीर जी जान तोड कर लड रहे थे, इस घोर युद्ध मे दुर्योधन का दांव चल गया, और वह वहां से बच निकला। और "खैर से बुद्ध घर को श्राये" को कहावत चरितार्थ करता हुए, वह अपने प्राणों की खेर मनाते हुए वहाँ से चला गया। जब अभिमन्यु ने अपने सामने के योद्धाओं में दुयोधन को न पाया, तो वह पश्चाताप करते हुए सोचने लगा- " अफसोस हाथ मे श्राया हुआ शिकार बच कर निकल गया ।" उसे दुख तो हुआ पर युद्ध करने में शिथिलता न श्रई । उसी प्रकार वह लड़ता रहा और सोचता रहा कि शीघ्र ही इन वीरों को मार कर वह दुर्योधन को जा घेरे। उसे ने वड े उत्साह से उन्हें मार भगाया श्रोर श्रागे वडा । इसी आशा से कि ग्रागे कही न कही तो फिर दुर्योधन से सामना होगा और अब की बार वह उसे बच निकलने का अवसर ही न देगा । वह मार काट करता हुआ ग्रागे वढता जा रहा था, पर उसकी चचल दृष्टि वार वार दुर्योधन को ही खोज रही थी । ५२६ कौरव सेना ने जब देखा कि बालक अभिमन्यु प्रलय मचाता हुआ आगे बढ़ा ही जाता है, और यदि यही गति रही तो शीघ्र ही वह समस्त कौरव सेना को मार भगायेगा, तो युद्ध-धर्म और लज्जा को उसने ताण पर रख दिया। थोर बहुत से वीर इकट्ठे होकर एक साथ चारी भोर से उस वीर वालक पर टूट पड़े । परन्तु जैसे बढ़ती हुई बाढ के मामने रेत के प्रसस्य टोले तहस नहस होते चले जाते हैं, वर्षा ऋतु मे उफनती नदिया अपनी रेती ले किनारों को दहाती हुई चली जाती हैं, इसी प्रकार अभिमन्यु अपने सामने ग्राये हुए वीरो को ढहाता, मार काट करता श्रागे बढ गया । कौरवो की विशाल सेना के मध्य अभिमन्यु मेरु पर्वत की भांति दृढ़ होकर खडा था, जो टकराता वही टुकड़े टुकड़े हो जाता । कौरव वीरो में ही हा हा कार मच गया और यह देखकर द्रोण, श्रश्वस्थामा, कर्ण, शकुनि आदि सात महारथियों ने अपने अपने
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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