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________________ बाहरवां दिन - ४९९ भीमसेन को आशा थी कि शोघ्र ही कोई गजारोही पाण्डव पक्षीय उधर पा निकले गा और भीमसेन को उस के सहारे इस खूख्वार हाथी से छुटकारा मिल जाये गा, पर किसी का ध्यान इस भोर हो तो कोई आये भो। कितनी ही देरि तक हाथी और भीम सेन के वीच पाख मिचौली का खेल सा चलता रहा। और इधर जव किसी ने भीमसेन को कही न पाया तो पाण्डव पक्षीय सेना मे शोर मच गया-"अरे ! भामसेन को भगदत्त के हाथी ने मार डाला।" इतनी अावाज उठनी थी कि सारी पाण्डव पक्षीय सेना मे कोलाहाल मच गया। यह शोर सुनकर युधिष्ठिर ने भी समझ लिया कि सचमुच ही भीमसेन मारा गया होगा। यह सोच कर उन्हें जितना शोक हुया उस से अधिक भगदत्त पर क्रोध पाया। उन्हो ने अपने जवानो को आदेश दिया कि चलो तुरन्त भगदत्त पर अाक्रमण कर दो। भीमसेन के हत्यारे को उस की धृष्टता का फल चखा दो।' दशार्ण देश के राजा ने अपने लडाक हाथी पर सवार होकर अपने सगी साथी संनिको सहित भगदत्त पर भीषण आक्रमण कर दिया । दशार्ण के हाथी ने वडे जोर से युद्ध किया, फिर भी सुप्रतीक के आगे वह अधिक देर न ठहर सका | सुप्रतीक ने अपने दातो से उस हाथों की पस्लिया तोड डाली। और देखते ही देखते वह भूमि पर लुढक गया । उसी समय भीमसेन को अवसर मिला और वह सुप्रतीक की टागो के बीच से निकल भागा। इघर दशार्ण के सैनिक और युधिष्ठिर के भेजे सनिक एक साथ सुप्रतीक पर टूट पड़े। उन के बाणो, भालो, गदायो और तलवारो की मार से सूप्रतीक व भगदत्त की बूरी दशा हो गई तो भी भगदत्त ने हिम्मत न हारी। भगदत्त और सुप्रतीक घायल हो चुत थे, फिर वूढ भगदत्त का कलेजा दावानल की भाति जल रहा था। अपने चारो अर पडे सनिको की कोई चिन्ता न कर के, उस ने अपने हाथी को सात्यकि की ओर बढा दिया। क्रुद्ध हाथी ने जात ही सात्यकि के रथ पर यात्रमण कर दिया और रथ को उठा कर फर दिया। सात्यकि फूरती से रय से कूद गया, वरना कदाचित वह स्वय भी अपने रथ के साथ साथ नष्ट हा जाता। परन्तु सात्यकि
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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