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________________ .४९८......... ४९८ जैन महाभारत हाथियो व घोडो के पैरो तले सैकडों न रमुण्ड कुचले गए। बाहि त्राहि और चीख पुकार से सारा क्षेत्र भर गया और ऐसा प्रतीत होने लगा मानो प्रलय आ गई है। .. यह देख कर दुर्योधन पक्षीय भगदत्त नरेश से न रहा गया उस ने सेना को रोकने के लिए शख नाद किए। शोर मचाया। गला फाड़ फाड कर चिल्लाया -- "रुक जायो, रुक जायो, भागो मत, तुम्हे माता के दूध की सौगध।" . . . . परन्तु वहा कौन मुनता था, सब को अपने अपने प्राणो की पड़ी थी, यह देखकर वह अपने सुप्रतीक हाथी पर सवार होकर, भीम सैन की ओर झाटा। वह हाथो बहुत ही हिंसक प्रकृति का था। ऐसे अवसरो के लिए हो शूर भगदत्त ने उसे पाल रखा था। . हाथी ने जाते ही अपनी सूण्ड गदा की भाति बडे जोर से घुमाई और क्षण भर मे ही उस ने भीमसेन के रथ को चूर चूर कर दिया। रथ के घोडो को सूण्ड मे दवा दवा कर दूर फेक दिया। विवश होकर भीमसेन रथ से कूद पडा और गदा सम्भाल कर उस दुष्ट हाथी की अोर झपटा। वह हिंसक हाथी, भीमसेन को गदा लिए अपनी ओर आते देख कर और भी कुपित हो गया और भीमसेन को अपनी सूण्ड मे दवोच कर मार डालने के लिए दौडा। परन्तु उस समय भीमसेन को एक. उपाय सूझा। गदा घमा कर उस ने हाथी के मस्तक पर फेक कर मारी और स्वय दौड़कर हाथो के पैरो के पास पहुंच गया उसे हाथियो के मर्मस्थलो का तो पूर्ण ज्ञान था ही, जाते ही घूसों से हाथी के नीचे के मर्मस्थालो पर चोट करने लगा। वज्रकाय भीमसेन के घुसो की मार से हाथी विलबिला उठा। पर टाँगो से सटे होने के कारण हाथी उसका कुछ न विगाड सकता था। वह उसे पकड़ने और चूंसो की मार से वचने के लिए कुम्हार के चाक की भांति चक्कर खाने लगा। पर भीमसेन भी उसे बुरी तरह चिपटा था, वह भी घूमता रहा। घूमते घूमते अचानक उस हिंसक गज ने भीमसेन को अपनी सूण्ड मे कस लिया और उठा कर दूर फेक दिया। चोट तो लगी पर क्रोध के मारे भोमसेन जल उठा। दौड कर पून. हाथी के पीछे से उसकी टांगों में घुस गया और लगा मर्म स्थलो पर चोटे करने। आखिर हाथी बेचारा उसके चूंसो से तग आगया।
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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