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________________ ܐ ד * चौतालीसवां परिच्छेद * **** ********* passage युधिष्ठिर को जीवत पकड़ने की चेष्टा FEL. ************************ ****** द्रोणाचार्य ने जान बूझ कर श्रेपनी सेना की व्यूह रचना 'इस प्रकार की कि वे अन्य कौरव पक्षीय वीरो को एक एक पाण्डव महारथी के सामने छोडते हुए वय युधिष्ठिर को स श्रीर अर्जुन श्रादि अन्य पाण्डव वीर कौरव वोरो से उलझ कर रह जाय । युधिष्ठिर उनके पजे से आ जाये । उस दिन जव द्रोणाचार्य को कौरव वीरो ने सेनापति के रूप मे देखा तो उत्साह पूर्वक उनका अभिनन्दन किया और कर्ण को उनके साथ देखकर तो संनिक कहने लगे - " अव पाण्डवो की पराजय निश्चित है । पितामह तो पाण्डवो से स्नेह रखते थे श्रुत. वे स्वयं ही अर्जुन के सामने निष्क्रिय होकर खड े रहे और मारे गए, पर कर्ण तो किसी को रियायत नहीं करने वाला " कौरव पक्षीय वीरो ने कर्ण के स्वागत मे बार बार शख नाद किए और द्रोणाचार्य के अभिनन्दन मे जय जयकार की ! 3 1 उधर चूकिं पाण्डवो को दुर्योधन की योजना ज्ञात हो गई थी इस लिए धृष्टद्युम्न ने पाण्डव पक्षीय सेना की व्यूह रचना इस प्रकार की कि सारी सेना एक प्रकार से महाराज युधिष्टिर की रक्षा मे हो गई । c -1 , सूर्य का रथ श्राकाश पथ पर बढ़ रहा था । किरणें ताप वर्षा करने लगी और पाण्डवो के सेनापति धृष्टद्युम्न ने अपना शख् बजाया। समस्त शूरवोर सेनापति की ओर किसी प्रदेश के सुनने की इच्छा से देखने लगे । सबका ध्यान उसी ओर ग्राकपित होगया । सेनापति एक हाथी पर खड़े हो गए और समस्त सेना को
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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