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________________ भीष्म का विछोह ४७९ चेहरा कठोर था। परन्तु न तो दुर्योधन ने उनके चेहरे को परखा और न उनके शब्दों पर ही ध्यान दिया, वह तो अपनी बनाई योजना पर फूलकर कुप्पा हो रहा था और ऐसे कह रहा था जैसे इस सर्वोत्तम योजना के लिए उसे कोई पुरस्कार मिलने वाला है, अपने सेनापति के नाते अपने षडयन्त्र की सारी बाते उनके आगे खोलते हुए उसने कहा-''प्राचार्य जी । हम तीनो ने यह अनुभव किया है कि युद्ध की जो गति चल रही है, यदि यही गति रहे तो सम्भव है कि कौरव और पाण्डव सभी रण क्षेत्र मे पितामह भीष्म का अनुसरण कर जाए। पर कृष्ण तो फिर भी शेष रह जायेंगे। न द्रौपदी तथा कुन्ती आदि का ही बध होगा। इस लिए सम्भव है कृष्ण हमारा राजपाट कुन्ती या द्रौपदी को दे दें और इस प्रकार पाण्डवों के परिवार को ही राज श्री प्राप्त हो जाये। समस्या का अन्धकार पूर्ण पहलू यही है। इस लिए हम तीनो ने बड़ें विचार के उपरान्त इस अन्धकारपूर्ण व दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति से बच निकलने का यही मार्ग सोचा है। आज पितामह की मृत्यु के समय युधिष्ठिर के मुख पर जो भाव आ रहे थे वे इस बात के द्योतक हैं कि वह अपन कुल का नाश नही देखना चाहता और दुबारा युद्ध के लिये किसी प्रकार तैयार न होगा।" सारी बात सुनकर द्रोणाचार्य उदास हो गए। वे सोचने लगे कि व्यर्थ ही वे कल्पना करने लगे थे कि दुर्योधन का दिल अच्छा है, उसमे भ्रात स्नेह जागत हो सकता है। वे मन ही मन दुर्योधन को निन्दा करने लगे। फिर भी अपने को यह कहकर उन्होने सान्त्वना दी कि चलो, जो भी हो, युधिष्ठिर के प्राण न लेने का कोई न कोई तो बहाना मिला ही। . कर्ण ने द्रोणाचार्य के मुख पर गहरी दृष्टि डाली और पूछा"क्यो आचार्य जी क्या हमारी योजना आपको पसन्द न आई।" "आप लोगो ने समस्या के अन्धकार पूर्ण पहलू को देखकर अपनी योजना बनाई और मुझे आपकी योजना पसन्द आ सकती है तो उसके प्रकाश पूर्ण पहल को देखकर। द्रोण ने कहा। "वह क्या ?" "वह यह कि आपकी योजना से युधिष्ठिर के प्राणो की रक्षा हो जायेगी, हम धर्मराज के बध करने केपाप से बच जायेंगे और यह
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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