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________________ ४७८ जैन महाभारत ४७८.... सामने नतमस्तक हो रहा हूं." द्रोणाचार्य को दुर्योधन की बात से ठेस लगी। फिर भी अपनी . स्थिति कोसमझ कर उन्होने शात भाव से पूछा-"तो फिर साफ साफ बतायो न अपना उद्देश्य ।" । "बात यह है प्राचार्य जी ! --दुर्योधन ने आचार्य जी को अपना वास्तविक उद्देश्य बताते हुए कहा-“यदि आप युधिष्ठिर को जीवित पकड लें तो वे हमारे बन्दी हो जायेंगे और इससे पाण्डवो की हार हो जायेगी। फिर युधिष्ठिर हमारे हाथ मे होगा, जो चाहे करेंगे। रण क्षेत्र से तो मामला समाप्त हो जायेगा। घर जाकर देखा जायेगा।" आचार्य सशंक हो उठे। बल्कि जो शका उनके मन मे जागृत हुई उससे सिहर उठे। विस्मित होकर पूछा-"तो क्या इरादा है तुम्हारी । साफ साफ बताओ।" उनको वाणी मे कठोरता आ गई थी कर्ण ने उसे भाप लिया, धीरे से दुर्योधन को कुहनी मारी। दुर्योधन ने सम्भलते हुए कहा"पाप गलत न समझे। हम युधिष्ठिर को बन्दी बनाकर राज्य का थोडा सा भाग पाण्डवो को देने की बात करके सन्धि कर लेगे । और फिर ... " द्रोणाचार्य एक दम प्रसन्न हो उठे-उनके भाव वदल गए । तेजी से बोले- ''और फिर भाईयो की भांति रहने लगेंगे।" "नही आचार्य जी, श्राप फिर भ्रम मे पड़ गए-दुर्योधन को कर्ण ने वहुत सकेत किया कि वह उस समय कुछ न कहे, पर वह विना कहे न रह सका-"युधिष्ठिर तो क्षत्रिय राजाओ की रीति नीति के पालन में तनिक सो भी भूल नहीं करते। हम पुनः उन्ह जुए के लिये निमन्त्रित करेंगे।" "और पुनः राज्य ले लेंगे-बीच ही मे दु.शासन बोल उठाइम युद्ध से पाण्डवो को भी यह प्रतीत हो ही गया होगा कि युद्ध के द्वारा राज्य ले लेना दुर्लभ है, अत' पूनः वे युद्ध के लिए तयार न होगे। और राज्य हमारा ही रहेगा।" "क्या मैं पूछ सकता है कि इस कुचक्र के रचने की अावश्यकता क्यो अनुभव हुई ?"-द्रोणाचार्य ने पूछा। उस समय उनका
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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