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________________ P rer * चालीसा परिच्छेद * ******* नौवां दिन ****** ते . आठवे दिन का युद्ध समाप्त करके दुर्योधन ने अपने दैनिक धों से निवृत होकर दुःशासन, शकुनि और कर्ण को अपने शिविर म बुलाया। वह चिन्तित था। उदास भी। सभी उसकी चिन्ता का रहस्य समझते थे। फिर भी साहस बढाना अपना कर्तव्य समझ कर शकुनि ने कहा--"युद्ध की दशा देखकर चिन्तित होने से क्या लाभ ? हमे विश्वास है कि रण मे विजय हमारी ही होगी। परन्तु सापक गुल होने के समय एक बार बडे जोरो से भडकता है, मृत्यु क पजे मे आया प्राणी पूरी शक्ति से छटपटाता है, बस यही दशा हो रही है पाण्डवो की। वरना हमारी ग्यारह अक्षौहिणी सेना के सामने उनकी शक्ति ही क्या है। तुम व्यर्थ हो चिन्तित हो रहे हो।" ___ "नही मेरी चिन्ता व्यर्थ नही है। आठ दिन के युद्ध का विश्लेषण करो तो यही परिणाम निकलेगा कि इन दिनो मे ही हमे बहूत क्षति हुई है। स्वय मेरे अपने भ्रातायो की भी वलि हुई है । पर भगदत्त आज घटोत्कच को मारने में असफल रहे। भीष्म, कृत पमा आदि मिलकर, भी अर्जुन को न रोक पाये, बल्कि उल्टे उसने - मार हा योद्धाओ को मार गिराया। ऐमो दशा मे मै चिलित न हूं नागा वुशी मनाऊ?"-दुर्योधन ने कहा । दुशासन कहने लगा-"पाण्डव युद्ध आरम्भ होने से पूर्व तो ह भयभीत भो थे, पर अब तो उनका हौस्ना ही बढ़ गया है। प्रकला प्रजुंन पितामह और द्रोणाचार्य को खदेड़ देना है।"
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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