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________________ ४३४ जैन महाभारत करते करते ही कौरव महाबलियों के अंगरक्षको में से कितने ही प्रमुख वीरो को यमलोक पहुचा दिया। अभिमन्यु ने राजा अम्वष्ठ के रथ के घोडो को मार डाला . उसके सारथि को यमलोक पहुचा दिया। क्रुध होकर राजा अपने हाथ मे तलवार लेकर अभिमन्यु की ओर चला परन्त बाणो की मार से तंग होकर राजा को कृत वर्मा के रथ में शरण लेनी पड़ी। तव कही उसके प्राण बचे। धृष्ट घुम्न आदि अन्य वीर दूसरे कौरव वीरो से भिड़े थे। पदाति पदाति सैनिको से; अश्वारोही अश्वारोहियो से, गजारोही गजारोहियो से और रथी रथियो से लड रहे थे। गदाओं के वार हो रहे थे। कही तलवारे लटक रही थी। कही भाले चल रहे थे। रुधिर की धारा बह रही थी। वीरो, घोडो और हाथियो के शवों से रास्ते रुक गए थे। कही चीत्कार सूनाई देते तो कहीं सिंह नाद । मरने पर अश्रपात करने वाला कोई नही होता था और भागते पर वार करने वाला न होता। कोई अपने पराये की चिन्ता नही । करता। सभी शत्रु रूप में आये वीर को मार डालने के लिए प्रयत्नशील होते। कौरवो की सेना मे सर्वत्र भय छा गया था। अर्जुन ने भीष्म तक के मुकाबले पर हार नही मानी थी। वह वहादुरी से लडता रहा था। कौरवो के कितने ही प्रमुख वीर मारे जा चुके थे। इस लिए बार वार पश्चिम दिशा की ओर देखते थे। इतने में हो सूर्य अस्त हो गया और थके हुए कौरव सैनिको की इच्छा पर भीष्म जी ने युद्ध बन्द करने के लिए शखनाद किया। तलवारे रुक गई । भाले हाथो मे रह गए और धनुषो को डोरियाँ उतार दी गई। दोनो सेनाए अपने अपने शिविर मे चली गई।
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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