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________________ जैन महाभारत सिह् के समान गर्जना करता हुआ इरावान के पास गया और वडी - ही भयायक दहाड़ के साथ चेतावनी दी - इरावान ! ठहर अभी तुझे यमलोक पहुचाता हूं। " इतना कह कर वह भयानक विद्याधर इरावान पर टूट पड़ा। किन्तु इरावान साहस पूर्वक उसका मुकाबला करने लगा । जब इरावान इस प्रकार बस मे न श्राया तो अलम्बुष ने मायावी बाण मारे परन्तु इरावान उनके बस मे भी न आया । उसने भी ऐसे बाण मारे जिस से विद्याधर की मायाकी काट हो जाती । इसी प्रकार बहुत देर तक युद्ध होता रहा। एक बार अलम्प ने मोहिनी अस्त्र मारा जिस से इरावान मूच्छित हो सकता था, पर इरावान के पास भी अर्जुन के दिए हुए अस्त्र थे उसने मोहिनी अस्त्र का खण्डन कर डाला तब विद्याधर एक भीषण अस्त्र छोडकर दौडा | इरावान ने उस माया को काट डाला और के अलम्बुष पीछे दौड़ा । प्रलम्बुष के पास एक ग्राकाशगामी बायुदान था, वह उस में सवार होकर अस्त्रों का प्रयोग करता हुआ आकाश की ओर इरावान ने उस का पीछा जारी रक्खा। और अपने माया अस्त्रों से अन्तरिक्ष मे उडते श्रलम्बुष मोहित करके वाणो द्वारा उसे वीधता जाता । परन्तु विद्याधर के पास कुछ ऐसी बूटियां थी जिनके स्पर्ग मात्र से रक्त बहना बन्द हो जाता था और घाव अच्छे होने लगते थे। वह अपने ग्रस्त्रो का प्रयोग कर के इरावान का परेशान करता और उसके आक्रमणों से अपनी रक्षा करता हुग्रा हुआ अन्तरिक्ष मे जला जा रहा था। विद्याधर ने अपनी विद्याग्रो का बार बार प्रयोग किया, पर इरावान भी कोई कम न था । उसने अर्जुन के साथी गांधर्वों और विद्याधरो से बहुत कुछ सीख रखा था त प्रत्येक विद्या का वह काट जानता था । उड चला। ४२४ किन्तु एक वार विद्याधर अलम्बुष ने एक ऐसा माया मयी माण मारा कि उसके छूटते ही इराबान की आखो के सामने अधकार छा गया और बहुत प्रयत्न करने पर भी वह आगे न देख सका । तव अवसर पाकर अलम्बुप ने एक ऐसा वाण मारा कि इरावाप की खोपडी को काटता हुआ निकल गया । खोपडी कट कर भूमि पर गिर गई और फिर इरावान का शरीर भी अन्तरिक्ष से नीचे गिर गया । इरावान का शरीर रण भूमि मे आकर गिरा और उसे देख कर कौरव सैनिक उल्लास के मारे उछल पडे । जय नाद होने ""
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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