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________________ छटा दिन ४०९ उधर विकट गाडिया आपस में टकरा रही थी इधर विसरे नरेश के युद्ध भूमि से जाते ही द्रोणाचार्य पाण्डवो की सेना पर टूट पडे और अनेक स्थानो पर से पाण्डव सेना की पक्तिया उन्होने भग कर दी। इस प्रकार पाण्डवो की विशाल वाहिनी अकेले द्रोणाचार्य के ही कारण सैंकड़ों हज़ारो भागो मे विभक्त हो गई। शिखण्डी अश्वस्थामा के सामने डटा हुआ था। दोनो ही बड़े वीर थे, एक दूसरे की टक्टर के भी थे। कितनी ही देरि तक जब दोनो ओर से वार होते रहे और फिर भी कोई न गिरा, या किसी को कोई क्षति भी नही पहूची तो शिखण्डी. ने ललकार कर कहा"वढे वीर बनते थे । अपने शौर्य का कुछ चमत्कार भी दिखाओगे या यूही।" अश्वस्थामा गरज कर बोला- "चमत्कार देखकर ठहर नही सकोगे।" इतना सुन कुपित होकर शिखण्डी ने एक ऐसा बाण मारा कि अश्वस्थामा की भकुटी के बीच में चोट लगी। रक्त बह निकला। इस बात से अश्वस्थामा को बडा क्रोध आया और उसने कुछ दिव्यास्त्र प्रयोग करके शिखण्डी के रथ की ध्वजा तोड डाली, और फिर सारथी तथा घोडों को भी मार गिराया। तव शिखण्डी ढाल तलवार लेकर मैदान मे प्रा डटा । परन्त अश्वस्थामा तो रथ पर सवार था उसने अपनी स्थिति का लाभ उठाते हए तीक्ष्ण वाणी कद्वारा महावली शिखण्डी को अपने रथ की ओर बढने से रोक दिया और फिर कुछ ऐसे वाण प्रयोग किए जिनसे उसके खड़ग और दाल को तोड डाला। बाज की भाति वडे वेग से झपटते शिखण्डी क हाथो के शस्त्र नप्ट हो जाने के कारण अब उसके पास एक ही चारा था कि वह पुनः रथ पर सवार होकर युद्ध करे। वरना अवस्थामा को वाण वर्षा से वह स्वय भी ढेर हो सकता था। पिण्डो ने ऐसा ही किया और वह दौड़ कर सात्यकि के रथ पर चट गया। वीरवर सात्यकि राक्षस वशी अलम्बूष के सामने डटा हुआ था। क सहस्यों वारणो की मार से अलम्बुष घायल हो गया। नपारण वह ग्रोध के मारे जलने लगा और एक बार अध कार वाण मारकर उसने सात्यकि का धनुप ही तोड़ डाला और
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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