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________________ ४०६ जन महाभारत कर दिया। परन्तु शरीर से रक्त की धारा फूट निकलने के उपरान्त । भी विराट युद्ध भूमि मे डटे रहे। उन्होने द्रोणाचार्य पर कुपित होकर ऐसे तीक्ष्ण दिव्य बाण मारे कि वे तिलमिला उठे और प्रारम रक्षा करना उनके लिए एक समस्या बन गई। उस समय विराट ने चेतावनी देते हुए कहा । -"प्राचार्य जी । यहाँ आपकी विद्वता के प्रति श्रद्धा हमारे पाडे नही पा सकती। आपके कौशल को दुर्योधन के अन्याय का ग्रहण लग गया है।" द्रोणाचार्य इन शब्दो से चिढ गए और उन्होने कुछ ऐसे बाण प्रयोग किए, जिनको रोक सकने मे विराट सफल न हो सके और देखते ही देखते बाणो से विराट के रथ की ध्वजा गिर गई । जो अभी तक हवा मे बडी शान से लहरा रही थी, अब धूल मे रुलने लगी। और फिर विराट का सारथि घायल होकर लुढक गया। अश्व भी घायल हो गए। तब विवश होकर विराट अपने पुत्र शख कुमार के रथ पर जा चढ़े और पिता पुत्र दोनो द्रोणाचार्य के ऊपर वार करने लगे। दोनो ओर से बाणो की झड़ी लगी थी। एक वार तो वाणो की एक ऐसी रेखा सी बन गई जो कही टूटती ही - प्रतीत नही होती थी। शख कुमार ने कुछ देरि बाद ऐसे बाण चलाए जोकि द्रोणाचार्य के धनुष पर चढते वाणो को छूटने से पहले ही गिरा देते। तब द्रोणाचार्य पर यह स्पष्ट हो गया कि जब तक शख है, उनका एक भी वार विराट का कुछ न बिगाड़ सकेगा। इस लिए उन्होने अपना एक विशेष बाण निकाला और विद्युत गति से उसे धनुष पर चढाकर मारा। बाण एक विषैले सर्प की भाति शख की ओर बढा उसकी नोक से चिनगानिया सी छूट रही थी और एक विशेष प्रकार की गध आ रही थी। इस विचित्र वाण को देखकर विराट काप उठे और जब वह वाण आकर शख कुमार की छाती पर लगा, तो क्रोध के मारे विराट पागल से हो गए, उन्होने क्षण भर मे ही अनेको वाण द्रोणाचार्य पर मारे जिनसे वे घायल हो गए। पर ज्यो ही शख कुमार लोहू लुहान हुआ चीखता . हुआ रथ से पृथ्वी पर गिरा तो विराट का रोम रोम सिहर उठा। उन्होने अपने प्रिय युव के शव को विह्वल होकर वे रथ से कूद पड़े और पुत्र के शरीर को उठाकर रथ मे रख रण भूमि से बाहर चल पड़े।
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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