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________________ ११८ बकासुर वध भीम- काय शरीर और विलक्षण हाडी को देख कर बालक हसते - हसते लोट पोट हो जाते । जब कभी पाण्डवो को भिक्षा लेकर घर लौटने मे देरी हो जाती तो सती द्रौपदी बुरी तरह अशकाओ से पीडित हो जाती । बड़ी चिन्ता से उनकी बाट जोहती रहती । वह बेचैनी मे सोचने लगती कि कही दुर्योधन के दूतो ने उन्हे पहचान ने लिया हो, कही कोई विपदा न खडी हो गई हो । एक दिन चारो भाई भिक्षा के लिए गए, केला भीम सेन घर पर रहा। इतने मे ब्राह्मण के घर के भीतर से बिलख बिलख कर रोने की आवाज आई। ऐसा प्रतीत होने लगा मानो कोई बहुत ही शोक प्रद. घटना घट गई हो । भीम को जी भर आया । वह इसका कारण जानने के लिये घर के भीतर गया । कर देखा कि ब्राह्मण और उसकी पत्नी आखो मे कियां लेते हुए एक-दूसरे से बाते कर रहे है । अन्दर जा 3 आसू भरे सिस . ब्राह्मण बडे दुखी हृदय से अपनी पत्नी से कह रहा था"अभागिनी । कितनी ही बार मैंने तुझे समझाया कि इस ग्रन्वेर् नगरी को छोड़ कर कही और चले जायें, पर तुम ने न माना । कहती रही कि इसी नगर मे पैदा हुई, यही पली तो यही रहूगी । माँ बाप तथा भाई बहनों का स्वर्ग वास हो जाने पर भी तू यही, हठ करती रही कि यह मेरे वाप दादे का नगर है, यहीं रहूग 1 मैंने बहुत समझाया पर तेरी समझ मे एक न आई । अब बोलो क्या कहती हो ?" नही होता ? ब्राह्मण की पत्नी अपनी भूल पर पश्चाताप करती हुई वोली- 'मुझे क्या पता था कि यह दिन हमे भी देखना पडेगा । अपनी मात्र भूमि से किसे प्रेम हा आज अवश्य पछताती हूं । सोचती हूं कहा चली गई थी तब मेरी बुद्धि । आज सिर पर ग्रा बनी तो हाथ मलती है । पर क्या किया जाय । वस यही कर सकती हू कि मेरी ही हठ से आज इस परिवार पर यह विपत्ति पडी, ग्राज मुझे ही इसका दण्ड भोगने दें । आप बालकों को सम्भालें और मुझे जाने दे ।” 4
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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