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________________ प्रस्तुत ग्रन्थ लेखक के विषय मे अापने केवल पंजाब प्रांत मे ही नही महाराष्ट्र, सौराष्ट्र,बम्बई, बंगा विहार, राज्यस्थान गुजरात, काठिया वाड, यु पी. एम. पी पी ब एस. पी. मैसूर आदि अनेक प्रातो मे पैदल पर्यटन कर मधूर धर्मोपदेश हारा जनता का कल्याण किया और अब कर रहेहै तथ। सन् 1947 पूर्व रावलपिंडी, गुजरावाला, लाहौर, पसरूर, कसूर, स्यालकोट दि मे किया जो आज हमारे लिए विदेश बन कर पाकिस्तान मे म्मलित है। आप अपने जीवन काल में कल्याणकारी लोक राज अहिंसात्मक विश्व बन्धुत्व एवं अध्यात्मिक साधना की पराकाष्टा को स्थापित कर रहे हैं पाप जीव विज्ञान के प्राचार्य है । आपका समग्र शरीरिक दर्शन ही जिस भाग्यशाली पुण्यवंत नर को उपलब्ध हो गए वह सदा के लिए कृत कृत्य हो गया उसका जीवन सफल एवं उच्चकोटि का बन गया । इस लोक मे तथा परलोक मे सुखमय बन गया। आप हमारी समाज मे एक दिनकर सद्दश्य है जिस प्रकार दिवाकर की सहस्रो किरणे प्रचण्ड एव प्रखर विस्तृत हो रात्रि तिमिर को नष्ट कर प्रकाश से जगमगा देता है परन्तु वह मार्तण्ड- तो.केवल रात्रितम का ही हरण करता है जो भौतिक है परन्तु पाप की जैन धर्म दिवाकर की कोटि-कोटि किरणें ज्ञान का अलोक धर्म का प्रकाश अध्यात्मिक मानव हृदय को पालौकिक करती हुई असार ससार नश्वर नाश्वान तथा क्षण-भगुर विश्व को त्यागने तथा सयम रूपी अमूल्य रत्न ग्रहण करने की प्रेरणा देती है। आपके जीवन की प्रत्येक घटना एक आदर्श मयी हैं और उस का वर्णन भी इसी लिए करते हैं कि ससार-ससार के मित्थ्या चक्कर से वचे पूण्य-पाप, सत्य-असत्य, हिंसा-अहिंसा की पहिचान करें और धर्म से सम्बन्ध योग कर जन्म मरण बन्धन तोड़े कर प्रष्ट कर्म रहित अजर अमर निराकार अरूपी अविकार सच्चिदानन्द सकल विश्व एव प्रयलोक दृष्टिगोचर स्वर्ग एवं दोजख का ज्ञाता परमात्मा. स्वरूप बन सकता है । आप का हृदय नवनीत सम मृदु शिशु सम सरल मानों प्रेम सरिता प्रवाहित हो रही है परन्तु नियम पालन तथा सयम क्रिया मे वज्र से भी निष्ठर है इसमे तनिक सन्देह तत पर अजमेर सादड़ी सोजत बीकानेर जहा ती
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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