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________________ चंदवारा उद्भव नया विकास उस वाहन के सम्बन्ध में भगरान महावीर न्वामी से गोतमग्वामी ने कि प्र--पान मते ! जी कि जणायद ? उतर--बावचण तिसपर नामनांत कम्म निवघट । 'प्रर्यान -भगवान चियावृत्य प्रति सेवा से जीव को क्या लाभ crate? या से नीर्थकरनामगार कर्म का बच होता है। श्रीमानाग नत्र म या वयातुर (नया) निम्न दस प्रकार की कही गः: (२) चियापच (२) उपजमायसंगारच (३) थेरवेयाश्य (४) मीरा (५) मालवेयाम (5) गिलाणवेयावच्च (७) गण 7717 () वनपयारच (६) सघवयावच्च (१०) साहम्मिय चार च। ___पान-(१) प्राचार्य की नेत्रा (२) उपाध्याय की सेवा (2) स्थविर पी मेवा (-) नपनी की नंगा (५) शिष्य का संवा () ग्लान-रोगी की मंगा (७) गगा की मेरा (5) कुता की मेघा (E) लघ की मेवा और (१) १ मां का ना। ___ मननीय अन्य कोई पद नही माना
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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