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________________ - ~-~ ~-~~~-~ ~ - ~ । यदवश का उद्भव तथा विकास पत्राफिक्या यह पाप ने अपनी बुद्वि से उत्तर दिया है, यदि हा नो प्रमका प्रमाण भी प्राप के पास होगा वह भी बताए। अब ता वह पुमप यान घरगया गार करने लगा कि हे राजन । रत्नपुर में एक पनि, उनी ने यह कहा है । मुझ जान पामर में ऐसे युनियुक्त तत्त्वविचन की क्षमता कहा ' राजा ने कहा “अच्छा तो नुम दृत हा" इन प्रचार कर कर वरनामृपाणा में नकार कर उसे विदा दो। उसके जाने क पश्चान गनकुमारी सुमित्रा ने पिता ने प्रार्थना को कि 'हे तात । अम पाउन न मरे अभिप्राय को ठीक ठीक समझा है, अब यदि वह प्रर्थ च परमार्थ न गरा पूर्ण विश्वाम करावं ना मै उसी को पत्नी बन गा अन्य किसी की नही ।' पिना की 'पाला लेकर राजकुमारी सुमित्रा 'अपन परिवार के साथ रन पर पहुंची श्रार उसने पडित मुप्रभ को मुलाया । नय राज कन्या ने उमन प्रश्न किया कि 'तप बहुत समय तक कसे टिकता है 'पल जनाय किम रीति न है ? पश्चात हितकारी कसे ? शार र नाश होने पर भी कैसे फल दता है ? कृपया इन शकाओं का ममाधान कर पानार्य कर ।' इन पर सुप्रभ ने इस प्रकार समझाना प्रारम किया। दो इभ्य पुत्रों की कथा
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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