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________________ ५७४ जैन महाभारत क्रमशः नोमदेव,सोमभूति और सोमदत्त नामक तीन भाई थे। तीनों में परस्पर अगाध प्रेम था। वे एक दूसरे से कभी विलग न होते। तीनों ही विवाहित थे जिनके रति समान रूपसी तीन स्त्रियां था जिनके नाम क्रमशः नागश्री, भूतश्री, यक्षश्री थे। माता-पिता के देहान्त होने के बाद वे अलग हो गये किन्तु भ्रातृत्व सुरक्षित रहा। वे अपने उद्यान की रूपहली रात्री में परस्पर क्रीड़ाएँ करते समय यापन करने लगे। इस प्रकार ऐश्वर्यपूर्ण जीवन विताते हुये उन्हें प्रात और सायंकाल का ध्यान भी नहीं रहता। वनों उपवनों में जाकर गोष्ठी तथा नृत्य गान का आयोजन करना यही उनकी दिनचर्या बन गई थी। एक दिन तीनों ने मिलकर विचार किया कि हमारे पास इतनी अमित धन राशि है कि दान देने तथा नित्य प्रति क्रीडाथ व्यय करने का भी जो परम्पराओं तक समाप्त नहीं हो सकती। अत हम पहले की भॉति ही प्रेमपूर्वक एक एक के यहाँ एक स्थान पर परस्पर स्वान पान आदि तथा मनोरजक कार्यों का आयोजन करना चाहिये।' तदनुसार क्रमश: एक दूसरे भाई के यहाँ भोजन का प्रबन्ध होने लगा। सभी एक दूसरे से बढ़ कर उत्तमोतम खाद्य पदार्थों का निर्माण करनी । प्रत्येक के हृदय में अपने अपने स्वाभिमान का भय बना रहता । अत बड़ी निपुणता से कार्य सफल किया करतीं। ___ क्रमशः एक बार नागश्री के यहा प्रीतिभोज था। उसने बड़ी प्रसबना एवं उत्साह पूर्वक नाना प्रकार के मीठे तथा नमकीन खाद्य पदार्थ नैयार किये । पढार्थी को तैयार करके उसने उन सबका आस्वादन लिया नाकि उस यह मालूम हो सके किसमें क्या कमी रह गई । फिर वही उमे उन सबके बीच उपहास का पात्र न बनना पड़े। किन्तु देवयोग में उन भाजियों में लौकी की भाजी भी थी। उसे चखने पर मालूम दया कि वह कड़वी है । इस पर नागश्री को बड़ा क्षोभ हुवा उसके सारे परिश्रमपर पानी फिर गया। खैर उसने उस समय उसे एक ओर छुपा कर रख दिया। फिर वह अपने श्राप को धिक्कारती हुई उस कड़वी भानी में व्यय हवं घत श्रादि उत्तम पदार्थों के लिये पश्चाताप करने मा समय तीनो भाई तथा दोनों देवरानियाँ या पहुंचे । नागश्री
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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