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________________ ६ चौबीसवां परिच्छेद के प्रद्युम्न कुमार तथा वैदर्भी कवार रुक्मणि के मन में विचार आया कि अपने भाई रुक्म की र कन्या वैदर्भी के साथ प्रद्युम्न कुमार का विवाह हो जाय तो बहुत ही अच्छा रहे। रुक्म के मन में श्रीकृष्ण की ओर से छाई ईर्ष्या का भी अन्त हो जाये और घर मे वैदर्भी जैसी सुन्दरी बहू बन कर आ जाये। ____ बात यह थी कि वैदर्भी के रूप और गुणो की चारों ओर चर्चा थी और कितने ही राजकुमार उसे प्राप्त करने के लिए लालायित थे । मक्मणि स्वय वैदर्भी की प्रशंसा किया करती थी, वह उसके लिए अच्छा वर खोज रही थी, तभी उसके मन मे प्रद्युम्न कुमार के साथ उसका विवाह करने की इच्छा उत्पन्न हुई। उसने अपने विचार का किसी पर प्रकट नहीं किया, बल्कि एक दूत के द्वारा अपने भाई रुक्म के पास एक पत्र भिजवाया, जिसमे वैदर्भी और प्रद्युम्न कुमार के परस्पर विवाह का प्रस्ताव किया गया था। रुक्म ने ज्योही पत्र पढ़ा, उमे क्रोध आ गया, आग्नेय नेत्री से दूत की ओर देखते हुए उसने पत्र फाड़ फेका और कहा-"जाकर कह देना कि रुक्मणि मेरे हृदय में छुपी चिनगारियो को हवा न दे । मेरे घावों पर नमक न छिड़के।" दूत ने आकर पूरी बात रुक्मणि को बता दी। रुक्मणि को जब पत्र की दुर्दशा ओर रुक्म का उत्तर ज्ञात हुआ वह गम्भीर हो गई। उमकी मनोकामना का गला दबा दिया गया था, अतः मन ही मन बहुत दुग्बी हुई। कहा किसी से कुछ नहीं। माता का खिन्न देखकर एक दिन प्रद्युम्न कुमार ने पूछा-"मां आज क्या बात है ? स्वास्थ्य तो ठीक है?
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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