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________________ २५ - 'अरिहंत' को नमस्कार किया है वह "अरिहत" कौन है ? तत्र सुमित्रा ने उत्तर दिया कि हं परिचारिकाओं । मैं नहीं जानती कि 'अरिहंत' फौन हैं, किन्तु इतना निश्चय पूर्वक जानती हॅू कि वे नमस्कार करने योग्य है । तत्पश्चात् उसने अपनी धायमाता को बुलाकर कहा कि हे माता, तुम गवपरणा करके बताओ कि "अरिहत" कौन हैं। इस पर धायमाता ने कहा कि - पुत्री, तुम निश्चिन्त रहो मैं शीघ्र ही पता लगाकर बताऊगी कि 'अरिहन्त' कौन है । इस प्रकार कह कर वह नगर में पता लगाने चल पडी । पूछते-पूछते नगर मे स्थित अरिहन्त की 'अनुगामिनी दत्त नामक आर्या के पास वह पहुच गई और उन्हें नमस्कार कर सारी बात निवेदन कर पश्चात् उन्हें बहुमान के साथ राजमहल में ले आयी । ހނނ ހ यदुषश का उद्भव तथा विकास .... राजकुमारी सानी को आते देख शैय्या से नीचे उतर पड़ी और उसने उन्हें नमस्कार किया, पश्चात् हाथ जोडकर पूछा कि - हे महाभागे ! आज में जब निद्रा से जागृत हुई तो सहसा ही मेरे मुख से " नमो अरिहंता" ऐसा वाक्य निकला, तभी में मेरे तथा दासियों के हृदय में अरिहत के जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हो रही है। कृपया 'आप 'अरित' कौन है ? किसे कहते है आदि बताकर हमे कृतार्थ कीजिएगा। राजकुमारी की प्रार्थना पर दत्त श्रार्या ने कहना प्रारंभ किया कि - हे राजकुमारी | इस अमार ससार मे त्रस स्थावर आदि समस्त प्राणी आठ प्रकार की कर्मरज से समन्वित हैं जिस के प्रभाव से प्राणी अकरणीय कार्य के करने में भी सकोच नहीं करते। अधेरी रात्रि में दीपक फे चुम जाने पर घोर अधकार छा जाता है और पास रही हुई वस्तु भी भली भांति दिखाई नहीं देती, ठीक उसी प्रकार पाप फालिमा में आच्छादित यह आत्मा न्यायपथ को देखता हुआ, जानता या और समझता हुआ भी नर्वदा अन्याय, अत्याचार श्रादि दूषित प्रवृत्तियों को और निरन्तर प्रवृत्त रहता है। दूषित प्रवृत्तिया जीवन को नारकीय बना देती है अतः जबतक पूर्व सचित पापकालिमा और वर्तमान की दूषित प्रवृतियों को समाप्त नहीं किया जाता तबनक श्रात्मश्वरूप नहीं पहिचाना जा सकता तथा यात्म स्वरूप के पहिचान विना मोक्ष एव निर्वाण की प्रप्ति नहीं होती थत नदैव उन कर्मकालिमा को दूर परने का प्रयत्न करना चाहिए । T
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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