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________________ प्रद्युम्न कुमार ५११ सोचा कि इस से पीछा छुडाना ही अच्छा है। जो कुछ थोडा बहुत मांगे दे दिवा कर मुक्ति लो। इस लिए उस से कहा--"हमारे पास जो है वह तो श्रीकृष्ण के घर दहेज में जायेगा। दहेज से पहले ही तू मांगता है तो ले जा, पहुँचेगा तो उसी घर जिस घर जाना है । अच्छा वता क्या चाहता है ? हाथी घोडे और कुछ, जो पसन्द हो माग। ____ कुमार ने चारों ओर दृष्ठि डाली और सजी सवारी पर बैठी कुमारी की ओर सकेत करके पूछा- “यह कौन है ? क्रोध को पीपे हुए एक कौरव बोला-"यह दुर्योधन की कन्या उदधि कुमारी है।' 'तो बस यही मुझे पसन्द है । इसे ही मुझे दीजिए।' भील रूपी प्रद्युम्न कुमार के शब्द सुनकर सभी कौरव और उनके सगी साथी आग बबूला हो गए। कहने लगे-“ो भीलडे, जिह्वा सम्भाल कर बात कर । अपनी ओकात देख कर बात कर ।' __ प्रद्युम्न कुमार ने शांत भाव से कहो- "इस मुझे दे दागे तो श्री कृष्ण बहुत प्रसन्न होंगे। एक कौरव ने कहा - "मस्तक तो नहीं फिर गया। दूसरे ने कहा'अजी मार कूट कर अलग करो क्यों इस मूर्ख के झगडे में फंस गए । धक्कम धक्का होने लगी, तब कुमार सडक पर लेट गया और विद्याओं के बल से ऐसा चमत्कार दिखाया कि कोरवों को सामने वृक्ष ही वृक्ष दिखाई देने लगे। कौरव दल चक्कर में पड़ गया। इसी प्रकार अनेक चमत्कारों के सहारे प्रद्युम्न कुमार ने उदधि कुमारी को अपने अधिकार में ले लिया और उसे लाकर अपने वायुयान में बैठा लिया। फिर अपना वास्तविक रूप उसे दिखाया, उदधि कुमारी उसका रूप देख कर मुग्ध हो गई। नारद जी ने उसे प्रद्युम्न कुमार का वास्तविक परिचय दिया और बताया कि तुम दोनों के उत्पन्न होने से पूर्व ही दोनों के माता पिता ने निश्चय कर लिया था कि तुम दोनों का परस्पर विवाह कर दिया जायेगा। पर चू कि कुमार हर लिए गए थे अतः विवश हा सुभानु के साथ तुम्हारे विवाह की बात निश्चित हुई है। वायुयान में नारद जी और प्रद्युम्न कुमार उदधि सहित द्वारिका पहुँचे । कमार नारद जी व उदधि को नगर से बाहर छोड कर स्वय
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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