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________________ प्रद्युम्न कुमार "कुमार । मैं तुम से करवद्ध प्रार्थना करती हूँ कि मेरी शैया पर मेरे अनुरागी के रूप में केवल एक बार " कुमार के कानों में जैसे किसी ने गरम-गरम सीसा ठूस दिया हो । वह अपने पर काबू पाने में असमर्थ हो रहा था, उसका कोप विखर पडना चाहता था । अत उसने अवाछनीय घटना को टालने के लिए वहा से खिसक जाना ही अच्छा समझा, वह उठा और तीव्र गति से कमरे से निकल गया। रानी-"कुमार | कुमार | सुनो तो " की आवाज लगाती रह गई। कुमार का चित्त अशांत हो गया था । उसे सारा ससार ही बदला बदला सा लगता था। उसे समस्त बातों और वस्तुओं पर अविश्वाससा होने लगा, अत अपनी अशांति को दबाने के लिए वह उपवन की ओर निकल गया ।१ वह तोचता जाता कि मा के हृदय में ऐसी पाप भावना क्योंकर उत्पन्न हुई ? इसमें किसका दोष है ? मैंने पूर्वजन्म मे ऐसा कौन सा पाप किया था जिसका परिणाम मुझे इस रूप में भोगना पड रहा है ? इस प्रकार वह घूमता घामता थोडी देर के बाद कुमार ने फिर कनकमाला के कमरे मे प्रवेश किया । कुमार के आते ही कनकमाल रानी का मुरझाया मुख कमल हठात् खिल उठा। उसने अपनो दासियों को तुरन्त बाहर चले जाने का सकेत किया और तकिए के सहारे उठ बैठी। बोली-"कुमार | तुम मुझे तड़पती छोड़ गए। मुझे तुम से ऐसी आशा नहीं थी। मेरा रूप अभी तक कितनी ही सुन्दरियों से उत्तम है। फिर भी तुम्हें रूप रसपान का निमत्रण स्वीकार नहीं हो तो किसे आश्चर्य नहीं होगा। तुम्हारे इकार से में व्याकुल हो उठी हूँ। फिर मी कभी कभी मेरा मन कहता था कि ऐसी भी मान्यता है कि उद्यान में उसे एक अवधि ज्ञानी मुनि मिले और उन्होने उमे चिन्तित देखकर उसे सान्त्वना देते हुए कहा कि घबरानो मत, यह तुम्हारे पूर्व जन्म के कुकृत्यो का फल है, उसे जब तक तुम नही भोग लोगे तव तक छुटकारा नही होगा । पश्चात् कुमार की जिज्ञाना को शान्त करने के लिये उसके पूर्व जन्म तथा माता के विछोह का कारण और रानी की कामवासना की उत्पत्ति प्रादि का सारा कथन सविस्तृत कह सुनाया और कहा कि इसमें जब तक तुम्हे विद्या प्राप्त नहीं हो जायेगी राव तक तुम यहां से जा नही सकोगे, पश्चात् कुमार विद्या प्राप्त करने का उपाय सोचने लगा । हरि०
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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