SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 509
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ “प्रदयुम्न कुमार बसन्त ऋतु आ गई,वन-उपवन तक सज गए । नप ने इस अवसर पर अपने मन को सजाने की युक्ति सोची और वसन्त खेलने के बहाने अनेक नपों को निमन्त्रित कर लिया। उन ही में हेमरथ को भी निमन्त्रित किया गया । हेमरथ को निमन्त्रण पाकर बहुत प्रसन्नता हुई। उस ने अपनी रानी से कहा-"देखा मैं कहता था न कि हमारे अधिक सत्कार से नप प्रसन्न होगा तो हमारे लिए बहुत ही लाभदायक बात होगी। तुम ने स्वय भोजन जिमवाया था, इस लिए नृप इतना प्रसन्न है हमें वसन्त खेलने के लिए निमन्त्रित किया है।" रानी का हृदय धडका, उसने पूछा-"तो क्या आप जा रहे हैं ?" "हा, और तुम्हें भी मेरे साथ चलना होगा । नृप ने हम दोनों को निमन्त्रित किया है।" कनकरथ की बात सुनते ही, रानी निमन्त्रण के रहस्य को समझ गई। उसने कहा- 'हे कथ | यह सब मेरे लिए जाल रचा जा रहा है। अतएव आप जाना चाहें तो चले जाय मैं नहीं जाऊगी।" ___ कनकरथ को रानी की बात न भाई, वह रुष्ट सा हो कर बोला-तुम अपने को समझती क्या हो ? तुम से ता उसकी दासियाँ भी सहस्रंगुनी रूपवती हैं । वह भला तुम्हारी ओर आख उठा सकता है ?" ' , 'हा, मै उसकी दृष्टि में तैरते उन्माद व विषयानुराग को भांप चुकी .. 'हा, मै उसनद शब्दों में कहा है, कनकरथ कहने - "तुम्हें अपने रूप पर अभिमान है, कनकरथ कहने लगा, इसलिए तुम समझती हो कि सारी दुनिया तुम पर मुग्ध है । यह तुम्हारी बुद्धि और दृष्टि का दोष है। 'जो भी हो, मैं वहा नहीं जाऊगी।" • "तुम्हें मेरे साथ चलना ही होगा।" कनकरथ अपनी हठ पर अड़ गया, पति की आज्ञा उसे माननी पडी और वह कनकरथ के साथ चलने को तैयार हो गई। चन्द्रामा को अपने महल में देख कर मधु को बहुत सन्तोष दृशा और एक दासी द्वारा उसे अपने पास धोखे से बुला लिग । म अनेक लोभ दिखाये और किसी प्रकार उसे अपनी लिया। कामान्ध हो कर मधु उस के साथ विषत्र मन्ट कर में लग गया। इन्द्र इन्द्राणी समान दोनों सुख मोट
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy