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________________ प्रद्युम्न कुमार ४८३ शिला पर ले गया था किन्तु वहाँ से विद्याधर पति महाराज कालसवर जो कि उधर से अपनी रानी सहित अपने राज्य को लौट रहा था तो उसकी दृष्टि बालक पर पड़ी और वह उसे पुण्वान समझ कर अपने राज्य में ले गया। वहां से ललित पालित होकर सोलह वर्ष की आयु में पुनः माता से मिलेगा। नारद ने फिर प्रश्न किया धूमकेतु का उस शिशु के साथ क्या वैर सम्बन्ध था ? नारद की बात सुनकर प्रभु ने कहना आरम्भ किया इसी भरतक्षेत्र के कुरु देश की राजधानी हस्तिनापुर थी। वहां विश्वकसेन नामक राजा राज्य करते थे। उनके मधु और कैटभ नामक राजकुमार थे जिन्हें महाराज विश्वकसेन ने शस्त्रास्त्र कला की पूर्ण शिक्षा दी । कुमारों के योग्य होने के बाद महाराज विश्वकसेन ने मधु को राज्य देकर तथा कैटभ को युवराज पद देकर स्वयं दीक्षा ग्रहण कर ली। __ इधर इन्हों के राज्य में भीम नामक एक पल्लीपति था, जो स्वभाव का अहकारी तथा उद्दण्ड था । वह इनकी किसी भी प्रकार से आधीनता स्वीकार न करता था, और चिरन्तर ग्रामवासियों को सताता रहता। महाराज मधु ने उसके दमनके लिए कई कड़े प्रयत्न किए किन्तु विफल रहे, अन्त में एक बार वे अपने मत्री के साथ एक विशाल वाहिनी सेना ले श्रामलकप्पा की ओर चल पड़े । मार्ग में एक बटपुर नगर आया। वहा के जागीरदार कनकरथ (प्रभ) ने जब सुना कि मधु नृप अपनी" सेना सहित नगरसे गुजर रहा है,तो वह स्वागत को पहुँचा और विश्राम के लिए अपने महल में ले आया। यथायोग्य सत्कार किया। भोजन का जब समय हुआ तो उसने अपनी रानी, चन्द्रामा से कहा-"यह एक स्वर्णिम समय नृप को प्रसन्न करने का मिला है। जितना इस अवसर पर हम नृप का सत्कार करेंगे, हमारे लिए श्रेयष्कर होगा। अतः मेरा विचार है कि नृप को प्रसन्न करने के लिए तुम स्वय भोजन परोसो।"
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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