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________________ प्रद्युम्न कुमार ४७७ शर्तों पर श्री कृष्ण और बलराम इस पडे और कहने लगे कि देखें ऊँट किस करवट बैठता है । कुमार का जन्म और विछोह एक दिन रुक्मणि श्रानन्दचित्त हो अपनी शय्या पर निद्रामग्न थी, कि उसे एक स्वप्न आया । स्वप्न में उस ने देखा कि वह एक धवलवृषम पर स्थित एक रम्य विमान में बैठी हुई है । इस शुभ स्वप्न को देख कर उस के चित्त को बडी शांति मिली । स्वप्न को शुभ जान कर उस ने श्रीकृष्ण को जा सुनाया और फल पूछा । श्रीकृष्ण बोले- "यह स्वप्न बताता है कि तुम एक तिलक समान, रूपवान, कला धारी, तथा गुणवान पुत्र की माता बनोगी।' रुक्मणि स्वप्न फल सुनकर बहुत प्रसन्न हुई । उचर भामा ने भी एक स्वप्न देखा और उसे श्रीकृष्ण को उल्लासपूर्वक सुनाया | श्रीकृष्ण ने बताया कि तुम्हारी कोख में एक जीव ने स्वर्गलोक से आकर स्थान पाया है । यह बात सुन कर सत्यभामा को बड़ा हर्ष हुआ । परन्तु जब से वह गर्भवती हुई तभी से उसे अभिमान हो गया । उधर रुक्मणि को पुण्य के प्रमाण स्वरूप दोहद उपजा, दान, तप, शील आदि के भाव उस के हृदय में उदित हुए। वह प्रफुल्लित रहने लगी । उदर अधिक नहीं बढ़ा | परन्तु सत्यभामा का उदर काफी बढ़ गया । वह रुक्मणि के उदर को देख कर सोचने लगी कि इसे गर्भ नहीं है, वैसे ही प्रपच रच रही है। गर्भ का तो निशान तक नहीं, यू ही ढकोसले रचती फिर रही है । पर अन्त में सारी ढकोस्ला बाजी और शान निकल जायेगी । परन्तु रुक्मणि के मन में ऐसी कोई बात ही न थी । सच है, जिस की जैसी भावना होती है वह वैसा ही देखता है और उसे वैसा ही फल मिलता है यादृशी भावना यस्य सिद्धिर्भवित तादृशी । दुष्टों को दुष्ट विचार और श्रेष्ठ मनुष्यों को शुभ विचार ही आते हैं । सत्यभामा मन ही मन प्रसन्न होती रही, वह अहकार में झूमती रही, और रुक्मणि प्रसन्नचित्त व निश्चिन्त हो दान देती रही । १ सहस्र रश्मियो युक्त सूर्य को देखा हरि० -
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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