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________________ * बाइसवॉ परिच्छेद * प्रद्युम्न कुमार एक बार रुक्मणि के घर अतिमुक्त अणगार पधारे । यह शुभ • समाचार सुनकर सत्यभामा भी उनके दर्शनों के लिए दौडी आई । रुक्मणि ने उन्हें आदर पूर्वक वन्दना करके कहा- "हे प्रभो । कृपया यह तो बताइये कि मेरे कोई पुत्र भी होगा या नहीं ? यदि पुत्र होगा तो कैसा?" अवधि ज्ञानी मुनि ने विचार किया और बोले-"हां, तुम्हें एक पुत्र रत्न प्राप्त होगा और वह हरि समान ही अति सुन्दर और बलवान होगा।" रुक्मणि को मुनि वचन से बहुत सन्तोष हुआ, जिस समय मुनिजी रुक्मणि के प्रश्न का उत्तर दे रहे थे सत्यभामा भी उनके सामने रुक्मणि के निकट ही बैठी थी। रुक्मणि ने मुनिवर का शुद्ध भाव से बहुत ही , सत्कार किया । और कुछ देरि बाद वे वहां से विहार कर गए। ___ रुक्मणि ने सत्यभामा से कहा- "बहिन | आज मैं बहुत प्रसन्न हूँ। मुनि जी ने जो भविष्य वाणी की है, उससे मेरी आत्मा को बहुत ही सन्तोष हुआ है।" सत्यभामा तुरन्त बोल उठी-"रुक्मणि | तू भी बड़ी भोली है । अरी । मुनिवर ने तो अति सुन्दर वर बलवान पुत्र की भविष्य वाणी मेरे लिए की है । तूने देखा नहीं मुनिवर जब कह रहे थे तब उनका मुख मेरी ओर था, उनकी आंखें मरी ओर थी। "नहीं मुनिवर ने तो मेरे प्रश्न के उत्तर में ऐसा कहा था।" रुक्मणि बोली। "परन्तु मुह तो मेरी ओर था।" "मुह मेरी ओर भी तो था" रुक्मणि बोली।
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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