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________________ ४७४ जैन महाभारत नामक कन्या थी, जो बहुत ही सुन्दर और गुणवंती थी। उसके एक भाई भी था जो अपनी कला में अद्वितीय था। श्री कृष्ण उसकी प्रशंसा सुनकर उसे प्राप्त करने के लिए उत्सुक हो गए। वे उसके साथ विवाह करने में सफल हो गए। उसे द्वारिका मे लाकर अन्य दो रानियों के साथ प्रेम पूर्वक रहने की शिक्षा दी। इसी प्रकार उन्होने सिंहलद्वीप के श्लेक्षण राजा की कन्या लक्ष्मणा से उसके सेनापति का मान मर्दन करके, राष्ट्रवर्धन की पुत्री सुषमा से उसके उद्दण्ड भाई का वध करके और सिंधु देश के मेरु भूपति को कन्या गौरी बाला से विवाह किया । हलधर के मामा हिरण्यनाभ . की कन्या पद्मावती को स्वयंवर में जीता। गान्धार देश के नागजीत राजा की कन्या गन्धारी से प्रेम के आधार पर विवाह किया । इस प्रकार श्री कृष्ण की आठ रानियाँ हु, जिनके साथ समान प्रेम से वे जीवन व्यतीत करने लगे। इधर बलभद्र का विवाह श्रीकृष्ण के विवाह से पूर्व ही उनके मामा रैवत (क) की रति समान सुरूषा कन्या रेवती से हो चुका था, पश्चात् रैवती की छोटी बहिनों का भी बलभद्र से हुआ। अत: वे भी अपनी चार रानियों साथ दोगुन्दक देव की भांति क्रीडाएं करते हुए, समय बिताने लगे। पाठकों को स्मरण होगा कि शौर्यपुर से विदा होने से पूर्व ही अरिष्टनेमि कुमार का जन्म हो चुका था। अब वे यहाँ द्वारिका में अपने साथियों 5 साथ द्वितीया के चन्द्र की भॉति परिवृद्ध होने लगे। यथा समय महाराज समुद्रविजय ने उनके शस्त्रास्त्र कला शिक्षा की उचित व्यवस्था करदी और वे कलाभ्यास करते हुए अपने अलौकिक कार्यों से सबको प्रिय लगने लगे। इस प्रकार आमोद-प्रमोदमय जीवन यापन करते हुए भी उनका मन सदा किसी अनुपम चिन्ता मे लीन रहता । वे घटो तक एक वस्तु का विचार करते रहते, साथियों को करुणा, विनय, सदाचार आदि शिक्षा देते रहते क्यों न देते उन्होंने तो यादव वश तथा ससार के भावी पथप्रदर्शक के रूप में आये थे । up
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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