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________________ - रुक्मणि मंगल ४६९ स्थान पर भोजकट नामक नगर बसाया और वहीं रहने लगा। उस क्षेत्र का वह नृप बन बैठा। ज्यों ही रुक्मणि को लेकर श्रीकृष्ण द्वारिका में पहुचे तो यह समाचार सुनकर कि श्रीकृष्ण खड्ग की शक्ति से एक अप्सरा समान राजकुमारी को लेकर आए है चारों ओर हर्ष दौड़ गया । जाते ही बलराम ने विधिवत् पाणि ग्रहण सस्कार का प्रबन्ध किया और एक दिन श्रीकृष्णा दूल्हा के रूप में हाथी पर सवार होकर बाजार से निकले। सारे नगर में धूम हो गई और विवाह सम्पन्न हो गया। नगर की नारियों ने जब रुक्माण के रूप की प्रशंसा सुनी तो वे राजमहल की ओर चल पड़ी । रुक्मणि को अलग ही महल दे दिया था वहाँ उसके साथ कुछ दासियां थीं। नारियाँ उसका मुख देखतीं तो हठात् कह उठती दुल्हन क्या है साक्षात इन्द्राणी है।" कोई कहती-"देवलोक से अप्सरा उतर आई है।" तो कोई उसे देखकर कहती-"ससार भर का सौंदर्य इस वधू में ही संग्रह कर दिया गया है।" __ इसी प्रकार की बातें द्वारिका की नारिया रुक्मणि को देखकर करतीं। श्री कृष्ण चन्द्र भी उसके रूप पर पूरी तरह से मुग्ध थे और रुक्मणि भी अपने पति पर पूर्णतया सन्तुष्ट थी। जब सत्यभामा ने रुक्मणि की प्रशसा सुनी तो वह जल उठी । वह रुक्मणि को देखने नहीं गई थी। नारद ऋषि के व्यंग एक दिन नारद जी फिर द्वारिका में आये और उन्होंने सत्यभामा को सम्बोधित करके कहा-"कहो सत्यभामा कुशल तो है ?" ___ "आप को तो ज्ञात है ही, मेरे पति देव भीष्मकी राज कन्या को ले आये हैं और अब वे पूरी तरह उसी पर आसक्त हैं । मुझे दर्शन भी नहीं देते । फिर कुशल हो तो क्यों कर " उस दिन सत्यभामा का मुख उतरा हुना सा था और बल्कि यू समझिए कि मुख कमल मुरझाया हुआ था । उस दिन उसने नारद मुनि की बड़ी आवभगत की थी। नारद जी के अधरों पर मुस्कान खेल गई, उनकी योजना जो -+उन्होने महल में ही गन्धर्व विवाह कर लिया । त्रि
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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