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________________ ४३६ जैन महाभारत www.rrrrrrrrrr warm "जीवयशा । यदि कस देवकी को ही मार देता तो न रहता वांस न बजती बांसुरी। देवकी ही न रहती तो यह दुष्ट उत्पन्न ही कैसे होता ? और क्यो आज यह दिन देखना पड़ता-अब जो कुछ हुआ, बेटी | उसे भूल जाओ और विश्वास रक्खो कि कस के हत्यारे को सपरिवार यमलोक पहुँचाऊंगा।" इस प्रकार धैर्य बंधा कर जरासंध ने जीवयशा को महल में भेज दिया और उसी समय सौम भूप को बुलवाकर दूत रूप में समुद्रविजय के पास भेजा। जरासंध के दूत का शौरीपुर में आगमन समुद्रविजय का दरबार लगा था कृष्ण, बलराम आदि भी वहाँ उपस्थित थे। द्वारपाल ने सोम भूप के आगमन की सूचना दी । समुद्रविजय ने उन्हे अन्दर भेज देने की आज्ञा दे दी। सोम भूप ने पाटर पूर्वक नमस्कार किया। समुद्रविजय ने बैठने की आज्ञा दी। और पूछा-"आज आपका इधर कैसे आगमन हुआ? अकस्मात, बिना किसी सूचना के आपका आगमन अवश्य ही किसी विशेष कारण वश हुआ होगा ?" ___"मैं आपके पास जरासंध के दूत के रूप में उपस्थित हुआ हूं।" सोम भूप बोला। "तो फिर बताइये क्या सन्देश है ?" "महाराज जरासंध, तीन खण्ड के अधिपति ने आदेश दिया है कि मैं आपके पास जाकर कंस के हत्यारे बलराम और कृष्ण को अपने अधिकार मे ले लू और यहाँ से ले जाकर उचित दण्ड के लिए महाराज को सौंप दू।" सोमभूप ने कहा। सोमभूप की बात सुनकर समुद्रविजय को कुछ क्रोध आया, पर वे क्रोध को पी गए और गम्भीरता पूर्वक बोले-यह तो उनका आपके लिए जो आदेश है वह आपने सुना दिया। पर मैं उनका आपको दिया हुआ आदेश सुनना नहीं चाहता, उससे मुझे भला क्या प्रयोजन । आप तो मुझे वह सन्देश सुनाईये जो उन्होंने आपके द्वारा मुझे भिजवाया है।"
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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