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________________ कंस वध ४२३ तब बलराम बोले-"तुम से आज तक मैंने इस रहस्य को छिपाए रक्खा, पर अब तुम काफी समझदार हो, इस लिए बताये देता हूँ। लो सुनो और इतना कह कर बलराम ने सारी बातें स्पष्ट तया बतादी, देवकी, वसुदेव, कस, एवता मुनि, जीवयशा और अपने बारे में भी। उन्होंने यह भी बता दिया कि अब तक तुम्हें क्यों छुपाया गया। श्री कृष्ण ने सारी बातें ध्यान पूर्वक सुनीं और अन्त में दात पीसने लगे वोले- उस दुष्ट कस को जिसने मेरे माता पिता को छल से प्रतिज्ञा में बाँधकर इतना अन्याय किया है । जिसने मेरे छ भ्राताओं को न जाने क्या किया, मैं उसके अन्याय का मजा चखाऊंगा। मैं आज प्रतिज्ञा करता हूँ कि जब तक कंस का वध नहीं कर दू गा तब तक चैन से न बेठू गा।" "इतनी दुर्लभ प्रतिज्ञा क्यों करते हो ?" बलराम ने कहा । "नहीं भेया | आज आपने मेरी आँखें खोल दी। अभी तक मैंने आपको नहीं पहचाना था, अपने को और अपने कर्तव्य को नहीं पहचाना था, अतएव मैं निश्चित होकर चैन करता रहा, पर आज पता चला कि मेरे सिर पर तो एक भारी बोझ है, जब तक उसे न उतार द मुझे चैन नहीं मिलेगा।" श्रीकृष्ण बोले, सच है जब तक मन का कांटा नहीं निकलता कल नहीं पड़ेगी। ___ज्यों ही बलराम और कृष्ण मल्लयुद्ध के लिए निश्चित स्थान के द्वार पर पहुचे कि उन्हें आता देख महावत ने मदोन्मत्त पदमोत्तर और चम्पक हाथी को उनकी ओर हांका। वे हिंसक हाथी पहले से ही कस ने द्वार पर खड़े कर रक्खे थे ताकि श्रीकृष्ण को द्वार पर समाप्त कर दिया जाय । श्रीकृष्ण हाथियों के अपनी ओर बढने का आशय समझ गए। उन्होंने दौड़कर मदान्ध पद्मोत्तर हाथी के दात पकड़ लिए। वे दांत जो दो कृपाणों की भाति बाहर निकले थे। इतने जोर से पकडकर उसके दांतों को मझोडा कि हाथी का मद झटकों में ही हवा हो गया। श्रीकृष्ण ने कुछ और शक्ति लगाई और हाथी के दात तोड़ दिए, फिर वह हाथी ऐसे चिंवाड़ने लगा जैसे कि चीत्कार कर रहा हो, महावत पल का यह अभूत पूर्व प्रदर्शन देखकर आश्चर्य चकित रह गया। दूसरी ओर चम्पक के दांतों को बलराम ने तोड़ डाला और दोनों ने रन मदमस्त हाथियों को मुष्टिक प्रहारों से ही धारशायी कर दाला।
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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