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________________ कसं क्य ४२१ हो ना । क्षत्राणी होती तो ये कायरों जैसी बातें न करती । कस हमें क्या खा जायेगा, इतने लोग जा रहे हैं कस उन्हें न खाकर क्या हमें ही खा जायेगा? ___ यशोदा बलराम के कठोर शब्द सुनकर रुआंसी होकर कहने लगीतो फिर तुम जाओ, कृष्ण को भी ले जाओ। मैं रोलू गी और क्या कर सकती हूँ। तुम मुझे माता कहते हो और मेरा कहा नहीं मानते उलटे मुझे कायर बताते हो तो जाओ, जो मर्जी हो करते फिरो।" ___ कृष्ण को बलराम जी द्वारा कही हुई बात एक गाली समान प्रतीत हुई, वे तुरन्त बोल पड़े-तुम्हें मेरी माता को गालिया देते लज्जा नहीं आती ? यदि मैं तुम्हारी मा को इतने कठोर शब्द कहता तो तुम्हें केसा लगता, मुह से बात निकालने से पहले यह तो सोच लिया होता कि यह शब्द कहाँ तक उचित हैं । तुम्हें यह शब्द शोभा भी देते हैं या नहीं ? तुम्हारी जगह यदि कोई और होता तो मैं मा का अपमान करने का जो दण्ड देता, बस वह में ही जानता हूँ। अच्छा जाश्रो अब मैं तुम्हारे साथ नहीं जाऊगा।" ___यशोदा ने देखा कि तनिक सी बलराम की भूल इन दो भाइयों में परस्पर विरोध का कारण बन सकती है, जो कदापि अच्छी बात नहीं कही जा सकती, अतएव वह अपना कतेव्य सम्मकर श्रीकृष्ण चन्द्र के सिर पर प्रेम भरा हाथ फेरती हुई बोली-नहीं, नहीं तू क्यों रुष्ट होता है, मैं बलराम की भी तो मां हूं। उसने मुझे गाली कहा दी है। वह तो मुझसे नाराज होकर ऐसी बात कह गया,वरना बलराम तो बड़ा बुद्धिमान् है ? उसी समय उस ने बलराम को अपनी छाती से लगा लिया और कहने लगी-मेरा बेटा मुझे गाली क्यों देता ? उसने तो सच्ची बात कह दी, मैं गुजरी तो हूं ही, मैं मल्लयुद्ध या किसी और युद्ध की क्या बात जानू । मैं तो वैसे ही डरती रहती हूँ। इसके बाद श्रीकृष्ण को सम्बोधित करके कहा-अच्छा अब तुम अपने भैया के साथ मथुरा चले जाओ । तनिक शीघ्र आना। "नहीं मैं नहीं जाऊगा अब ?" श्रीकृष्ण रोषपूर्ण शैली में बोले । यशोदा ने हसते हुए कहा-"ओहो, मेरा राजा बेटा, नाराज हो गया, क्या मां के कहने पर भी नहीं जाओगे। देखो आज भैया क साथ नहीं गए तो मैं नाराज हो जाऊंगी।"
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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